सरकारी रेडियो "आकाशवाणी" के सभी स्टेशन कैज़ुअल आर्टिस्टों के दम पर चलते हैं लेकिन यहां के नौकरीशुदा लोग कैज़ुअल आर्टिस्टों को यूं देखते हैं मानो बांग्लादेशी उनके आसाम में घुस आए हों.
ये रेग्यूलर प्राणी कुछ भी नया नहीं सीखते क्योंकि उन्हें पता होता है कि वे जीनियस हैं, केवल प्राइम प्रोग्राम ही करते हैं भले ही इनकी परफ़ार्मेंस कितनी ही फुसफुसी क्यों न हो, कैज़ुअलों से डरते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है वे वहां कैसे पहुंचे हैं, जहां ज्वायन करते हैं वहीं रिटायर हो जाते हैं इसलिए हीनभावना से भी ग्रसित होते हैं कि कैज़ुअल तो कल कहीं भी निकल जाएगा.. रेडियो सीढ़ी है, इन रेग्यूलरों को पक्का पता होता है कि उनकी पहचान कितनी है फिर भी मुग़ालते में रहते हैं कि वे ही मुग़लेआज़म के दिलीप कुमार हैं...एक ठस्से की पक्की हिन्दी न्यूज़ रीडर पीट सैम्प्रास को पेटे सम्प्रास (Pete Sampras) पढ़ रही थी. जब कच्चे न्यूज़रीडर ने टोका तो खुजाने लगी... और भी न जाने क्या... कहां तक लिखा जाए :-)
बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में। मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।। -- मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें! -- वन्दे मातरम्!
:) :) बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की बधाई
जवाब देंहटाएंमै भी समझ गया जी :) बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक!!
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
सादर
समीर लाल
जी ठीक कहा आपने
जवाब देंहटाएंबहुत मजेदार प्रस्तुति...बधाई काजल जी..स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंBehatrin...
जवाब देंहटाएंक्या बात कही दोस्त ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें काजल भाई ..!
badiya hai bhai.....
जवाब देंहटाएंअब मैं समझा कि हमारे मुल्क में कैज़ुअल्टी इतनी ज्यादा क्यों होती है :)
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता के पावन पर्व की रेगुलर शुभकामनायें :)
काजल भाई, हमें समझ नहीं आया, शायद संदर्भ नहीं पता है इसलिये!
जवाब देंहटाएं@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
जवाब देंहटाएंसरकारी रेडियो "आकाशवाणी" के सभी स्टेशन कैज़ुअल आर्टिस्टों के दम पर चलते हैं लेकिन यहां के नौकरीशुदा लोग कैज़ुअल आर्टिस्टों को यूं देखते हैं मानो बांग्लादेशी उनके आसाम में घुस आए हों.
ये रेग्यूलर प्राणी कुछ भी नया नहीं सीखते क्योंकि उन्हें पता होता है कि वे जीनियस हैं, केवल प्राइम प्रोग्राम ही करते हैं भले ही इनकी परफ़ार्मेंस कितनी ही फुसफुसी क्यों न हो, कैज़ुअलों से डरते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है वे वहां कैसे पहुंचे हैं, जहां ज्वायन करते हैं वहीं रिटायर हो जाते हैं इसलिए हीनभावना से भी ग्रसित होते हैं कि कैज़ुअल तो कल कहीं भी निकल जाएगा.. रेडियो सीढ़ी है, इन रेग्यूलरों को पक्का पता होता है कि उनकी पहचान कितनी है फिर भी मुग़ालते में रहते हैं कि वे ही मुग़लेआज़म के दिलीप कुमार हैं...एक ठस्से की पक्की हिन्दी न्यूज़ रीडर पीट सैम्प्रास को पेटे सम्प्रास (Pete Sampras) पढ़ रही थी. जब कच्चे न्यूज़रीडर ने टोका तो खुजाने लगी... और भी न जाने क्या... कहां तक लिखा जाए :-)
बढ़ीया
जवाब देंहटाएंजय हिंद
http://rimjhim2010.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html
aapne to aakashwani ki saari pole khol di
जवाब देंहटाएंताऊ लोग कुछ भी कह सकते हैं, पेटे संप्रास कहे या पीटो संप्रास को कहे... बुढ्ढे ताऊ और ताईयों को छूट है जी,:)
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.
रामराम.
बतौर कैजुअल आकाशवाणी में मेरा वर्षों का अनुभव है। समझता हूँ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा..
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
हैपी ब्लॉगिंग
बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में।
जवाब देंहटाएंमैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
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मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
--
वन्दे मातरम्!
Bahut Sarthak evam satik post...Shubhkaamane!!
जवाब देंहटाएंbahut khuub!
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