अली साहब, आप शायद अकेले हैं जो कार्टून को इतनी बारीकी और समग्रता से देखते हैं. बहुत भला लगता है.
मुख्य पात्र और संवाद के अतिरिक्त, कार्टून में वास्त्ाव में ही कई दूसरे तत्व होते हैं जिनका अपना महत्व होता है और वे कार्टून को और चुटीला/धारदार बनाते हैं. Art Appreciation के कोर्स चलाने वाले इन finer nuances को भी बराबर का महत्व देते हैं.
who--lagta he kajan bhai ko bahut anubhaw he.....karara
जवाब देंहटाएं:-) आइडिया बुरा नहीं है !
जवाब देंहटाएंआपका दिमाग भी खूब चलता है :)
जवाब देंहटाएंजो उसने ध्यान साधने के लिए गणित की कापी ही चुनी सो साबित ये कि ज्यादातर बड़प्पन गणित से सधता है :)
अली साहब, आप शायद अकेले हैं जो कार्टून को इतनी बारीकी और समग्रता से देखते हैं. बहुत भला लगता है.
हटाएंमुख्य पात्र और संवाद के अतिरिक्त, कार्टून में वास्त्ाव में ही कई दूसरे तत्व होते हैं जिनका अपना महत्व होता है और वे कार्टून को और चुटीला/धारदार बनाते हैं. Art Appreciation के कोर्स चलाने वाले इन finer nuances को भी बराबर का महत्व देते हैं.
हा हा हा!!!
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंदिल के बहलाने को ये ख़याल अच्छा है....
अनु
काजल भाई, अब तो कोई विमोचन करवा दो,हम कब से होमवर्क कर रहे हैं कापी लिए। :)
जवाब देंहटाएंहम तो बहुत छोटे किस्म के है :)
जवाब देंहटाएंवाह...क्या बात है.....
जवाब देंहटाएंसुपर्ब
जवाब देंहटाएंपूर्वाभिनय या पूर्व की याद।
जवाब देंहटाएंसब्र कहां रखूं
जवाब देंहटाएंन कुर्सी है पीछे
न आगे मेज है।
हा हा हा ! बहुत खूब।
जवाब देंहटाएं:)..habit ki baat hai na!
जवाब देंहटाएंकुछ फ़्लैश चमकें, कुछ तालियाँ बजे तो ही अब मुन्ना होमवर्क कर पायेगा.
जवाब देंहटाएंकाजल भाई ...हम भी विमोचन वाली लाइन में कब से खड़े है ...
जवाब देंहटाएं:)
very nice
जवाब देंहटाएंकाजल भाई... आप की तकलीफ समझ सकता हूँ...
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