सोमवार, 17 नवंबर 2008

भगवान की कविता

चिट्ठाजगत
मन्दिर में यूं चुपचाप
छुपे बैठे हो तुम
लगता है कि डरे सहमे
दुबके से पड़े हो ।

तुम जिस पहरे में हो
डरता मैं भी उसी से हूँ ,
हिम्मत है तो
अपने मन्दिर से बाहर आकर
मुझसे बात करो ....
बड़े भगवान बने फिरते हो।

मन्दिर में क्यों छुपे बैठे हो...
०००००

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