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मंगलवार, 25 नवंबर 2008

कविता: क्या मैं सही हूँ ?


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

जब से मैंने
अपने धर्म के खाने में
"अहिंसा" लिखा है,
मेरे दरवाज़े के बाहर
गिद्धों की पूरी जमात
आ जुड़ी है.

उनकी आँखों में रोशनी है
और चोंच में लार.

मैं असमंजस में हूं
कि मैने ऐसा क्या न्योता
दे डाला !

सोमवार, 17 नवंबर 2008

भगवान की कविता

चिट्ठाजगत
मन्दिर में यूं चुपचाप
छुपे बैठे हो तुम
लगता है कि डरे सहमे
दुबके से पड़े हो ।

तुम जिस पहरे में हो
डरता मैं भी उसी से हूँ ,
हिम्मत है तो
अपने मन्दिर से बाहर आकर
मुझसे बात करो ....
बड़े भगवान बने फिरते हो।

मन्दिर में क्यों छुपे बैठे हो...
०००००

बुधवार, 5 नवंबर 2008

मेरी मुहिम


मेरी मुहिम साफ़ है
मैंने ज़मीन बाँट
कर देश बनाए,
पानी बांटा सागर का,
फिर बांटा आकाश...

कोई मुगा़लते में न रहे
मेरी मुहिम साफ़ है.