शुक्रवार, 27 मई 2011

कार्टून:- हाय हाय इस मुए हुस्न का क्या करूं मैं


34 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा ! ये डी टी सी की सवारियां ।

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  2. स्टार होटल के रेस्टोरेंट के बेयरे और ढाबे वाले के छोकरे में फर्क तो होगा ही।

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  3. बाप रे 'सिस्टर' और 'बहिनजी' बोला ? स्साला गंवार ऐसा बोलना चाहिए किसी लेडी को? इत्ता भी नही मालूम उसे कि जमाना बदल गया है.किसी इंटरनेशनल कम्पनी को ज्वाइन कर लो न,स्वीट हार्ट ! फिर ये काजल भाई ऐसा कार्टून नही बनाएंगे.सच्ची.हा हा

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  4. काजल भाई, अगर अब के बाद ऐसा पाला पडे तो उसे इधर का पता दे देना। कसम से भाई, सिस्टर या बहनजी बिल्कुल नहीं कहूंगा।

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  5. जमाने के इस चलन पर,
    चच्चा ग़ालिब 'उचक' लिये

    तंग कपड़ों वाली 'जहाजी मोहतरमा' जी
    जहाज खुदा के गलियारे से गुजर रहा है
    थोड़ा पैमाना फिर भरो
    कि खुदा को 'हाय' तो कर लूँ :)

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  6. लगता है ओमान यात्रा का खुमार अभी उतरा नहीं है :)

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  7. बहिन जी... आप अपनी फ़ोटू भेजो हम तुम्हे स्वीट हार्ट, डार्लिंग, सेक्सी कह कर पुकारेगे:) कसम ट्रक वाले की

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  8. हुस्न के प्रति नाइंसाफी है

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  9. वाकई... बहुत नाईन्साफी है ये.

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  10. कोई तो कहता भी होगा तरस खाके - इतनी देर से खड़ी काहे हैं, हमरी बगल में बैठ जायें न। दो की सीट में तीन तो बैठ ही सकते हैं! :)

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  11. काश कि भारतीय रेल में भी परिचारिकायें होतीं तो तो..

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  12. नीरज जाट व राज भाटिया जी को तो मिलवा ही दो,

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  13. वाकई में बिलकुल सही ! बढ़िया लगा!

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  14. क्या बात है काजल कुमारजी !लोग व्योम बालाओं को परिचारिका संज्ञा से आगे तक ले जातें हैं .सीढ़ियों का फर्क है .कोई कहीं खड़े होकर देख रहा है कोई कहीं ,परवरिश का भी फर्क है ,खानदान का भी इसी लिए तो कहा गया है नेचर और नर्चर दोनों का जमा जोड़ हैं हम और आप .बेहतरीन कार्टून के लिए बधाई .

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  15. बहुत खूब जनाब...
    क्या त्रासदी है...

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  16. और वो भी तब जबकि पानी का बोतल तक देने का प्रावधान नहीं होता!

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