बाप रे 'सिस्टर' और 'बहिनजी' बोला ? स्साला गंवार ऐसा बोलना चाहिए किसी लेडी को? इत्ता भी नही मालूम उसे कि जमाना बदल गया है.किसी इंटरनेशनल कम्पनी को ज्वाइन कर लो न,स्वीट हार्ट ! फिर ये काजल भाई ऐसा कार्टून नही बनाएंगे.सच्ची.हा हा
क्या बात है काजल कुमारजी !लोग व्योम बालाओं को परिचारिका संज्ञा से आगे तक ले जातें हैं .सीढ़ियों का फर्क है .कोई कहीं खड़े होकर देख रहा है कोई कहीं ,परवरिश का भी फर्क है ,खानदान का भी इसी लिए तो कहा गया है नेचर और नर्चर दोनों का जमा जोड़ हैं हम और आप .बेहतरीन कार्टून के लिए बधाई .
:)))
जवाब देंहटाएंहा हा हा ! ये डी टी सी की सवारियां ।
जवाब देंहटाएंस्टार होटल के रेस्टोरेंट के बेयरे और ढाबे वाले के छोकरे में फर्क तो होगा ही।
जवाब देंहटाएंचलिए... यात्रा का अच्छा अनुभव रहा :)
जवाब देंहटाएंउफ़ क्या त्रासदी है :):)
जवाब देंहटाएंबाप रे 'सिस्टर' और 'बहिनजी' बोला ? स्साला गंवार ऐसा बोलना चाहिए किसी लेडी को? इत्ता भी नही मालूम उसे कि जमाना बदल गया है.किसी इंटरनेशनल कम्पनी को ज्वाइन कर लो न,स्वीट हार्ट ! फिर ये काजल भाई ऐसा कार्टून नही बनाएंगे.सच्ची.हा हा
जवाब देंहटाएंयह तो है।
जवाब देंहटाएंकाजल भाई, अगर अब के बाद ऐसा पाला पडे तो उसे इधर का पता दे देना। कसम से भाई, सिस्टर या बहनजी बिल्कुल नहीं कहूंगा।
जवाब देंहटाएंबहनजी जी भी
जवाब देंहटाएंडबल डबल जी
nice....... :)
जवाब देंहटाएंबहुत नाइंसाफी है भाई.
जवाब देंहटाएंजमाने के इस चलन पर,
जवाब देंहटाएंचच्चा ग़ालिब 'उचक' लिये
तंग कपड़ों वाली 'जहाजी मोहतरमा' जी
जहाज खुदा के गलियारे से गुजर रहा है
थोड़ा पैमाना फिर भरो
कि खुदा को 'हाय' तो कर लूँ :)
आये हाय.. ये जुल्म!!!
जवाब देंहटाएंबडी तकलीफ का विषय है।
जवाब देंहटाएं---------
हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
अब क्या दोगे प्यार की परिभाषा?
लगता है ओमान यात्रा का खुमार अभी उतरा नहीं है :)
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंबहिन जी... आप अपनी फ़ोटू भेजो हम तुम्हे स्वीट हार्ट, डार्लिंग, सेक्सी कह कर पुकारेगे:) कसम ट्रक वाले की
जवाब देंहटाएंमजेदार और सटीक
जवाब देंहटाएं:)..ऐसा भी होता है !
जवाब देंहटाएंबहुत नाइंसाफी है ..
जवाब देंहटाएंbahut khoob rahi ,chehre par muskaan bikhar gayi .
जवाब देंहटाएं:))))
जवाब देंहटाएंहुस्न के प्रति नाइंसाफी है
जवाब देंहटाएं:)))))
जवाब देंहटाएंवाकई... बहुत नाईन्साफी है ये.
जवाब देंहटाएंvery sad. what a tragedy? ch..ch..ch..
जवाब देंहटाएंकोई तो कहता भी होगा तरस खाके - इतनी देर से खड़ी काहे हैं, हमरी बगल में बैठ जायें न। दो की सीट में तीन तो बैठ ही सकते हैं! :)
जवाब देंहटाएंकाश कि भारतीय रेल में भी परिचारिकायें होतीं तो तो..
जवाब देंहटाएंनीरज जाट व राज भाटिया जी को तो मिलवा ही दो,
जवाब देंहटाएंवाकई में बिलकुल सही ! बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंक्या बात है काजल कुमारजी !लोग व्योम बालाओं को परिचारिका संज्ञा से आगे तक ले जातें हैं .सीढ़ियों का फर्क है .कोई कहीं खड़े होकर देख रहा है कोई कहीं ,परवरिश का भी फर्क है ,खानदान का भी इसी लिए तो कहा गया है नेचर और नर्चर दोनों का जमा जोड़ हैं हम और आप .बेहतरीन कार्टून के लिए बधाई .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब जनाब...
जवाब देंहटाएंक्या त्रासदी है...
और वो भी तब जबकि पानी का बोतल तक देने का प्रावधान नहीं होता!
जवाब देंहटाएं:)))
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