टेलिविज़न पर आजकल चल रहा वह विज्ञापन आपने भी देखा होगा जिसमें एक बच्चा माँ से अपनी रिमोट वाली कार खोने की शिकायत करता है. तभी, पड़ोसी / पारिवारिक मित्र कार दिलाने की बात करता है तो बच्चा तपाक से जिस लहजे में कहता है कि 'कार आप क्यों दिलाएंगे, मेरे पापा दिलाएंगे' , सुनकर आश्चर्य हुआ कि ऐसा कौन रचनाधर्मी होगा जो बच्चे से यूँ कहलवाने का माद्दा रखता होगा .
हद तो तब हो गई जब, इसी विज्ञापन में, पड़ोसी / पारिवारिक मित्र को आगे यह कहते सुना कि 'अगर आपके पापा भी खो गए तो ?' मैं जानना चाहता था कि ऐसा विज्ञापन किसका हो सकता है जिसे न बच्चे की भावनाओं की परवाह है, न ही बात करने की तमीज.
और सच्चाई मेरे सामने थी.....यह बाबुओं की एक और सरकारी कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम का विज्ञापन था. एक करेला दूसरा नीम चढ़ा. ऐसे विज्ञापनों की परिकल्पना केवल वही सिफारिशी लोग कर सकते हैं जिनके लिए कला और काला में कोई अन्तर नहीं होता. और, निसंदेह ऐसे विज्ञापनों को केवल ऐसे बाबू लोग ही वाह-वाह करते हुए स्वीकृत कर सकते हैं जिनके लिए अपनी ओछी तथाकथित रचनात्मकता का आत्मविज्ञापन महज़ भोंडे फैशन से ज़्यादा कुछ भी नहीं होता.
आपने विज्ञापन के बारे में तो ठीक कहा लेकिन आपके ध्यान में ये लाना चाहूंगा कि ओछे लोग हर श्रेणी में होते हैं बाबू ओछे होते हैं आपकी यह सोच ही ओछी है श्रीमान।
जवाब देंहटाएंविज्ञापनों में बच्चों का उपयोग वैसे ही गलत है। फिर यह विज्ञापन तो असंवेदनशीलता की हर सीमा पार करता लगता है। बेहद कसेला स्वाद छोड़ जाता है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
पहले दो पैरा से सहमत.. बहुत बेहुदा विज्ञापन है..
जवाब देंहटाएंतीसरा पैरा? आप में और विज्ञापन बनाने वालों में फर्क कम कर दिया..
इस बेहुदा विज्ञापन को जीवन बीमा से न जोडे़। यह एक मल्टीनेशनल कंपनी का विज्ञापन है।
जवाब देंहटाएंcmpreshd से पूरी तरह सहमत !
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