बुधवार, 24 दिसंबर 2008

कार्टून्स : एक बेचारे सम्पादक की दुविधा....

1 टिप्पणी:

  1. अरे भाई आपको ग़लते लगी होगी। यह समझ कर अख़बार नहीं निकाला होगा कि आज हर रोज़ की तरह लूट-पात चोरी घूसखोरी, आतंकवाद और अन्य कई जघन्य अपराधों के साथ फलाँ मंत्री के जन्म दिवस के उत्सव की खबर, किसी शिलान्यास की खबर भी होगी, लेकिन अखबार मालिक श्री संपादक ने ये देख कर नहीं निकाला होगा कि आज कोई विज्ञापन नहीं है मंदी के इस दौर में। शायद आपको ये अहसास नहीं हुआ होगा कि अब अख़बार विज्ञापनों के लिए निकला करते है और ख़बरें, ख़बरें तो अखबारों में उस जगह लगाई जाती हैं जहां विज्ञापन कम पड़ जाए। अख़बार मालिकों का बस चले तो खबरों की जगह विज्ञापन ही लाद दें। फिर भी आपको कार्टून के लिए बधाई।

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