ठंड में नीचे बिठाना, वहां गीले बेंत की बौझार से कम कहां है. कॉंग्रेस तक ने फ़ैसला कर लिया कि सवा सौ साल पुरानी परिपाटी छोड़कर, कार्यकारिणी की बैठक ज़मीन पे बैठ कर नहीं करेंगे पर आयोजक हैं कि अभी भी बेचारे कवियों को कुर्सियों पर बैठाने को तैयार ही नहीं.
पं. जसराज पहले तबला बजाते थे, किसी गवैये ने कह दिया कि तबलची नीचे बैठते हैं, डन्होंने गायक बनने का निश्चय कर लिया. बेचारे कवियों को परंपरा के नाम पर पता नहीं कब तक ज़मीन पर ही रगेदे रहेंगे ये आयोजक.
:):) आवश्यकता आविष्कार की जननी है :)
जवाब देंहटाएं:) ..'viraat samMelano' ka aisa standard ?
जवाब देंहटाएंघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
जवाब देंहटाएं। लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज सोमवार के चर्चा मंच पर भी है!
सूचनार्थ!
गीले बेंत का व्यवहृति स्थल है, अस्तु आशंकित कवि की 'पूर्व सुरक्षा तैयारी'जैसा :)
जवाब देंहटाएंठंड में नीचे बिठाना, वहां गीले बेंत की बौझार से कम कहां है. कॉंग्रेस तक ने फ़ैसला कर लिया कि सवा सौ साल पुरानी परिपाटी छोड़कर, कार्यकारिणी की बैठक ज़मीन पे बैठ कर नहीं करेंगे पर आयोजक हैं कि अभी भी बेचारे कवियों को कुर्सियों पर बैठाने को तैयार ही नहीं.
हटाएंपं. जसराज पहले तबला बजाते थे, किसी गवैये ने कह दिया कि तबलची नीचे बैठते हैं, डन्होंने गायक बनने का निश्चय कर लिया. बेचारे कवियों को परंपरा के नाम पर पता नहीं कब तक ज़मीन पर ही रगेदे रहेंगे ये आयोजक.
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जवाब देंहटाएंधाँसू!
जवाब देंहटाएंहर स्थान गर्म रहे..
जवाब देंहटाएंजो दरी ए आयोजक बिछाते भी है, वे भी घिस-फट गई है :)
जवाब देंहटाएं:-)
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जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर !ऊपर से मजबूरन वाह वाह भी करनी पड़ती है हाय हाय की जगह .ठंड से सब कुछ जम जाता है .निगोड़ी चाय से होता भी क्या है .
नायाब इंतज़ाम
जवाब देंहटाएंसही जुगाड़
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