रविवार, 9 दिसंबर 2012

कार्टून:- कि‍स्‍सा कवि‍ के पि‍छवाड़े का


13 टिप्‍पणियां:

  1. घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
    । लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज सोमवार के चर्चा मंच पर भी है!
    सूचनार्थ!

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  2. गीले बेंत का व्यवहृति स्थल है, अस्तु आशंकित कवि की 'पूर्व सुरक्षा तैयारी'जैसा :)

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    1. ठंड में नीचे बि‍ठाना, वहां गीले बेंत की बौझार से कम कहां है. कॉंग्रेस तक ने फ़ैसला कर लि‍या कि‍ सवा सौ साल पुरानी परि‍पाटी छोड़कर, कार्यकारि‍णी की बैठक ज़मीन पे बैठ कर नहीं करेंगे पर आयोजक हैं कि‍ अभी भी बेचारे कवि‍यों को कुर्सि‍यों पर बैठाने को तैयार ही नहीं.


      पं. जसराज पहले तबला बजाते थे, कि‍सी गवैये ने कह दि‍या कि‍ तबलची नीचे बैठते हैं, डन्‍होंने गायक बनने का नि‍श्‍चय कर लि‍या. बेचारे कवि‍यों को परंपरा के नाम पर पता नहीं कब तक ज़मीन पर ही रगेदे रहेंगे ये आयोजक.

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. जो दरी ए आयोजक बिछाते भी है, वे भी घिस-फट गई है :)

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  5. बहुत खूब सर !ऊपर से मजबूरन वाह वाह भी करनी पड़ती है हाय हाय की जगह .ठंड से सब कुछ जम जाता है .निगोड़ी चाय से होता भी क्या है .

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