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हा हा हा वैशाखी ही वैसाखी .... inhin पर आश्रित हैं .
जवाब देंहटाएं:):) बिना बैसाखी के कुछ नहीं कर सकते ...
जवाब देंहटाएंआप उन्हें बैसाखी पर्व भी नहीं मनाने देंगे :)
जवाब देंहटाएंप्रिय ब्लोग्गर मित्रो
जवाब देंहटाएंप्रणाम,
अब आपके लिये एक मोका है आप भेजिए अपनी कोई भी रचना जो जन्मदिन या दोस्ती पर लिखी गई हो! रचना आपकी स्वरचित होना अनिवार्य है! आपकी रचना मुझे 20 जुलाई तक मिल जानी चाहिए! इसके बाद आयी हुई रचना स्वीकार नहीं की जायेगी! आप अपनी रचना हमें "यूनिकोड" फांट में ही भेंजें! आप एक से अधिक रचना भी भेजें सकते हो! रचना के साथ आप चाहें तो अपनी फोटो, वेब लिंक(ब्लॉग लिंक), ई-मेल व नाम भी अपनी पोस्ट में लिख सकते है! प्रथम स्थान पर आने वाले रचनाकर को एक प्रमाण पत्र दिया जायेगा! रचना का चयन "स्मस हिन्दी ब्लॉग" द्वारा किया जायेगा! जो सभी को मान्य होगा!
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हेल्लो दोस्तों आगामी..
एक्सचेंज आफर कमाल का है.
जवाब देंहटाएंवैशाखियों के बिना चलना कठिन है.
जब अपने पैर ना हों तो वैसाखियाँ चाहियें ही.
इन्होने अपनी तरह देश को भी मजबूरन बैसाखियों के सहारे ही टिका दिया है!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कार्टून। लाजवाब।
जवाब देंहटाएंबैसाखी के बिना कुछ नहीं कर सकते! वैशाखियों पर आश्रित जो हैं|
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंदोनों हाथों में बैसाखियाँ!
यह तो अलाउद्दीन का चिराग खरीदने जैसा है:)
जवाब देंहटाएंबैसाखी ....सच कहा ....सटीक
जवाब देंहटाएंकितना दयनीय बन्दा
जवाब देंहटाएंकितना सच काजल भाई, काश की इसे सत्ताधीश समझ पाता। बधाई इस संवेदना के लिए।
जवाब देंहटाएंबडा कर्रा है ये सच।
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Hmmmm.....kya kahen aisee halat ko?
जवाब देंहटाएंबैसाखी तो बैसाखी है, पाँव नहीं बन पायेगी..
जवाब देंहटाएंसरदार पर चुटकुलों का दौर फिर शुरू होने ही वाला है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कार्टून....
जवाब देंहटाएंअब ये बैशाखी ही देश का सच है .काजल भाई .कहाँ रहे हम तुम इतने दिन ?
जवाब देंहटाएंशायद इन्ही के आसरे कुछ समय और गुजर जाये.
जवाब देंहटाएंये बेचारी बैसखिया हमारे प्रधानमंत्री को क्या सहारा देंगी वो तो खुद मैडम जी के सहारे चल रही है |
जवाब देंहटाएंsatik..karara
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या। कार्टून का मजा तभी है जब टिप्पणी भी उतनी ही जोरदार हो जितना कि कार्टून। आपन इस काम में सिद्धहस्त हैं।
जवाब देंहटाएंजनता भी तो बैसाखी है !
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