काजल कुमारजी हवन और शव दाह में फर्क है .एकाधिक बार हमने दोनों की साक्षी की है .हवन के साथ समवेत स्वर में एक बड़े हुजूम के साथ शंकराचार्य द्वारा संपन्न मन्त्र जाप के संग हवन में वायुमंडल की निश्चय ही शुद्धि होती है .जोर का धक्का ध्वनी तरंगे वायुमंडल को देकर वायु को ऊर्ध्वगामी बनातीं हैं ,लेकिन शव दाह के हम जब भी साक्षी बनें हैं ,निगम बोध घाट दिल्ली ,बुलंद शहर ,रोहतक और अपनी जन्मस्थली गुलावठी (बुलंदशहर ) में ,आँखों में एक अजीब सा भारी पन उतरा है .एक अजीब सा गश नशा काया पर छाया है .जो स्नान के बाद भी खासा देर तक काबिज़ रहता है .उस परिमंडल की वायु जहां मुर्दा फुंक रहा है हव्य -सामिग्री से थोड़ी कम ज़रूर गंधाएगी लेकिन हवा शुद्ध कैसे होगी ,मांस के जलने से .?केश के जलने से . हाड जरे ज्यों लाकड़ी ,केश जरें ज्यों घास , सब जग जलता देख कर ,कबीरा भया उदास .
बहुत खूब काजल जी आपकी रचनात्मक ऊर्जा का ज़वाब नहीं .सही टिपियातें भी हैं आप दिल से सब के ब्लॉग पर दस्तक देकर ऐसा मुझे बारहा लगा है .बधाई आपको आपके इस दिल से संलग्न होने जुड़ने को .काजल कुमार के कार्टून तनाव कम करतें हैं .
सामूहिक हवन और मन्त्र- जाप बादलों का भी आवाहन करते देखे गएँ हैं कई मर्तबा .हालाकि सिल्वर क्लाउडिंग भी कभी कभार ही कामयाब होती है सौ फीसद नहीं .बादलों का बनना एक कोम्प्लेक्स प्रक्रिया है वह भी बरसाती बादल का जिसमे अनेक निर्धारक तत्व शामिल रहतें हैं .
सही कहा ।
जवाब देंहटाएंपहले हर्षद मेहता जैसे किसी के पास ट्रेनिंग तो ले लेलो :)
जवाब देंहटाएंसही सलाह एमबी ए बाजी नहीं चलती हर जगह :)
जवाब देंहटाएंये 'MBA'बाजी क्या होती है जी ?
जवाब देंहटाएंसही सलाह... :)
जवाब देंहटाएंWah! Kya khoob kahee!
जवाब देंहटाएंओह,जागरूकता का यह आलम होता,तो दुनिया भर की अर्थव्यवस्था यूं न चरमराती।
जवाब देंहटाएंकाजल कुमारजी हवन और शव दाह में फर्क है .एकाधिक बार हमने दोनों की साक्षी की है .हवन के साथ समवेत स्वर में एक बड़े हुजूम के साथ शंकराचार्य द्वारा संपन्न मन्त्र जाप के संग हवन में वायुमंडल की निश्चय ही शुद्धि होती है .जोर का धक्का ध्वनी तरंगे वायुमंडल को देकर वायु को ऊर्ध्वगामी बनातीं हैं ,लेकिन शव दाह के हम जब भी साक्षी बनें हैं ,निगम बोध घाट दिल्ली ,बुलंद शहर ,रोहतक और अपनी जन्मस्थली गुलावठी (बुलंदशहर ) में ,आँखों में एक अजीब सा भारी पन उतरा है .एक अजीब सा गश नशा काया पर छाया है .जो स्नान के बाद भी खासा देर तक काबिज़ रहता है .उस परिमंडल की वायु जहां मुर्दा फुंक रहा है हव्य -सामिग्री से थोड़ी कम ज़रूर गंधाएगी लेकिन हवा शुद्ध कैसे होगी ,मांस के जलने से .?केश के जलने से .
जवाब देंहटाएंहाड जरे ज्यों लाकड़ी ,केश जरें ज्यों घास ,
सब जग जलता देख कर ,कबीरा भया उदास .
बहुत खूब काजल जी आपकी रचनात्मक ऊर्जा का ज़वाब नहीं .सही टिपियातें भी हैं आप दिल से सब के ब्लॉग पर दस्तक देकर ऐसा मुझे बारहा लगा है .बधाई आपको आपके इस दिल से संलग्न होने जुड़ने को .काजल कुमार के कार्टून तनाव कम करतें हैं .
जवाब देंहटाएंसामूहिक हवन और मन्त्र- जाप बादलों का भी आवाहन करते देखे गएँ हैं कई मर्तबा .हालाकि सिल्वर क्लाउडिंग भी कभी कभार ही कामयाब होती है सौ फीसद नहीं .बादलों का बनना एक कोम्प्लेक्स प्रक्रिया है वह भी बरसाती बादल का जिसमे अनेक निर्धारक तत्व शामिल रहतें हैं .
जवाब देंहटाएंकृपया एक मर्तबा यहाँ भी पधारें और अपनी सार्थक टिपण्णी -टिपियाने से नवाजें .
जवाब देंहटाएंकृपया एक मर्तबा यहाँ भी पधारें और अपनी सार्थक टिपण्णी -टिपियाने से नवाजें .http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंनेक सलाह...
जवाब देंहटाएंबहुत सही :)
जवाब देंहटाएंसादर
सही है।
जवाब देंहटाएंसटीक सलाह.
जवाब देंहटाएंबहुत सही सलाह दी है..
जवाब देंहटाएंसही कहा।
जवाब देंहटाएंक्या बात है. सुंदर कटाक्ष.
जवाब देंहटाएं