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रविवार, 21 दिसंबर 2008

ताज, ओबेरॉय और शेक्सपियर....

कभी कभी सोचता हूँ... ये सही बात है कि शेक्सपियर के पात्रों की त्रासदी बड़े लोगों की त्रासदी होती थी इसीलिए, पढ़ा-लिखा तबका उन्हें आज भी याद करता है....
मुंबई के CST, ताज, ओबेरॉय, नरीमन हाउस और टैक्सीओं में कई लोगों ने दुर्भाग्यपूर्ण घटना में जान खोई..... पर क्यों हमारी नज़र केवल ताजों के दोबारा शुरू होने पर ही जा टिकती है ?.... शेक्सपियर फिर याद आता है.

मंगलवार, 11 नवंबर 2008

सचिन ; ये तूने क्या कर दिया

मराठी होकर भी, सौरभ की बिदाई कमीज़ पर बांग्ला में लिख डाला? .... तुम्हें MNS से डर नहीं लगा ?