शनिवार, 3 नवंबर 2012

कार्टून:-ले, पढ़ा के लि‍खा के और बना ले नवाब


20 टिप्‍पणियां:

  1. ...पर वे अपनी व्यथा सरदार से क्यों कह रहे हैं :)

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    1. इस पर अगले कार्टून में प्रकाश डालें काजल भाई :))

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  2. व्यथा ऐसे को सुनाओ जिसके पल्ले ही ना पड़े ! मौन सिंह को व्य्थासुनाकर देशवासियों को क्या मिला उस पर रति भर फर्क पडा ? :) :)

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  3. वे अपनी व्‍यथा सरदार से नहीं बल्कि असरदार जसपालसिंह भट्टी से कह रहे हैं।

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    1. राजेश जी ,
      बेल्ट के ऊपर झलकती / उमड़ती / घुमड़ती तोंद और पाकेट में धंसे हुए हाथ देख कर अपनी हिम्मत नहीं हुई कि उसे जसपाल कहें !

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  4. हाँ आजकल हालात बदल गए हैं .पहले जो कुछ नहीं बन पाता था टीचर बन जाता था .अब थोड़ा ज्ञान की भी ज़रुरत पड़ती है .अपने राहुल बाबा टीचर नहीं

    बन सकते .अब इतिहास के साथ देश के भूगोल की भी ,भू -मंडल की भी जानकारी चाहिए टीचर बनने को .बढ़िया लाए हो लाज़वाब करने वाला तर्क और

    तंज दोनों .बधाई .

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  5. बात तो बेटा ही ठीक कह रहा है ...
    :)

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  6. बात सच है...गुरु करते तो बड़ा काम हैं लेकिन ...

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  7. कहीं बैठे हुए सज्जन सरदारजी से यह तो नहीं फरमा रहे कि:

    "पढ़े बिन ही तू बन गया है नवाब,
    है पढ़ के भी मेरा तो खाना ख़राब."

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  8. काजल कुमार जी एक कार्टून बनाने का कष्ट करियेगा जिसमे आप दर्शायें की बड़े अधिकारी और तथा कथित नेता अभिनेता की अवहेलना के कारन शासकीय शाला में शिक्षा प्रभावित है वो जानबूझकर निजी शाला में अपने बच्चों को पढ़ाते हैं .आभार.

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  9. होनहार है। पढ़ाई छुड़ा कर राजनीति में भरती करा दो!

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