आपकी इस उत्कृष्ट कार्टून की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की लगाई है! यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
हंगामा है क्यों बरपा।
जवाब देंहटाएंहाँ, भाई मैदान में गधे तो होते ही हैं.:)
जवाब देंहटाएंकोई गैर कहे तो गुस्सा आना लाज़िमी है भाई ।
जवाब देंहटाएंसच कड़ुवा होता है वाली कहावत ऐसे ही तो नहीं है :)
जवाब देंहटाएंमुला काबुल में भी सभी घोड़े ही थोड़े होते हैं !
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट कार्टून की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की लगाई है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
गधों को गधा कहने पर बुरा नहीं लगेगा क्या ?
जवाब देंहटाएंअब आपको क्या कहें आप तो आप ही हैं ।
जवाब देंहटाएंसच ही तो है...खेल चल रहा है बाहर बैठे गधे माइक पर रेंक रहे हैं :)
जवाब देंहटाएंये दिखाने के लिये कि एकदम से गधे नहीं हैं:)
जवाब देंहटाएं:) Sach kahan mana hai...
जवाब देंहटाएंगधे कहने वाला खुदे गधा है. उसे इज्जत सहित रामप्यारे कहना था.:)
जवाब देंहटाएंरामराम
गधों को गधा नहीं कहना चाहिए काजल भाई !
जवाब देंहटाएं:-)