काजल कुमार जी का कहना है कि विदेशों के समाचार अंग्रेजी से हिंदी में अनुदित हों। भारत के समाचार हिंदी से अंग्रेजी में अनुदित हों। अनुवाद से चिढ़ थोड़े न है।:)
अजी इस जूठन को ही समाचार कहना पड़ता है .जबकि हिंदी अनुवाद की नहीं भाव की अर्थ और व्यंजना की भाषा है .हर भाषा का अपना मिजाज़ होता है .अब भाई साहब हेंड पम्प को कोई छापा -कल कहे तो कैसा लगेगा .रेल गाडी को आप यदि लौह पथ गामिनी कहे तो आप अपने कपडे फाड़ लेंगे .और ये सिरोपरि उपस्कर क्या है ?हम बताते हैं ये है "ओवर हेड केबिल्स ".
हिंदी की खबरें हिन्दुस्तानी में ही अच्छी लगतीं हैं .
scientist(साइंटिस्ट )को साइंसदान बोल लो भैया /विज्ञानी कह लो .लेकिन नहीं scientific को भी वैज्ञानिक कहेंगे और साइंटिस्ट को भी .और विज्ञानियों ने कहा कि जगह कहेंगे वैज्ञानिकों ने कहा -रेडिओ वाले कहेंगे साइंटिस्ट- ओँ ने कहा -रिसर्चरों ने कहा -चल पड़ी है यह भाषा तो हम भी लिख रहें हैं कभी कभार .देवेन्द्र पांडे जी ने मर्म को पकड़ा है हिंदी के समाचार मूल हिंदी में ही हों अनुवाद की हिंदी में नहीं . अब कलम दान का क्या अनुवाद करेंगे आप संस्कृत निष्ठ हिंदी में और क्यों करेंगे .पागल कुत्ती ने काटा है क्या .भाषा बोलती हुई हो जिसे सब समझ सकें .सामाचारीय नहीं .
सही बात...
जवाब देंहटाएंसुनाओ जी...:-)
जवाब देंहटाएंवो भी सरकार द्वारा लिखा !
जवाब देंहटाएंअधिकतर समाचार अंग्रेजी में ही आते हैं और हिंदी समाचार वाचक उनका तेज़ी से अनुवाद करते हैं और पढ़ने के लिए तैयार करते हैं. मेरी उनसे हमदर्दी है.
जवाब देंहटाएंगज़ब...ये लगा तीर सीधे निशाने पे.
जवाब देंहटाएंकमाल है जी। कब से ये सच बोलना शुरू हुआ।
जवाब देंहटाएंटी.वी. चैनलों में तो यही होता है...अब आकाशवाणी में भी होने लगा?
जवाब देंहटाएं(१) अनुवाद एक सम्मानजनक विधा / गरिमामय आयोजन / स्तुति योग्य कृत्य है...पर देखिये तो सही कार्टूनिस्ट इसे भी नहीं बख्शते :)
जवाब देंहटाएं(२) अनूदित देश / अनूदित नेता / अनूदित समाचार / अनूदित वगैरह वगैरह...सो इसमें बुरा क्या है :)
काजल कुमार जी का कहना है कि विदेशों के समाचार अंग्रेजी से हिंदी में अनुदित हों। भारत के समाचार हिंदी से अंग्रेजी में अनुदित हों। अनुवाद से चिढ़ थोड़े न है।:)
हटाएंकाजल भाई , अपने कमेन्ट का दूसरा हिस्सा इसी ज़ेहनियत /गुलामी के वास्ते :)
हटाएंबुरा हाल है ...
जवाब देंहटाएंकौन जिम्मेदार है ....????
:)
जवाब देंहटाएंअजी इस जूठन को ही समाचार कहना पड़ता है .जबकि हिंदी अनुवाद की नहीं भाव की अर्थ और व्यंजना की भाषा है .हर भाषा का अपना मिजाज़ होता है .अब भाई साहब हेंड पम्प को कोई छापा -कल कहे तो कैसा लगेगा .रेल गाडी को आप यदि लौह पथ गामिनी कहे तो आप अपने कपडे फाड़ लेंगे .और ये सिरोपरि उपस्कर क्या है ?हम बताते हैं ये है "ओवर हेड केबिल्स ".
जवाब देंहटाएंहिंदी की खबरें हिन्दुस्तानी में ही अच्छी लगतीं हैं .
scientist(साइंटिस्ट )को साइंसदान बोल लो भैया /विज्ञानी कह लो .लेकिन नहीं scientific को भी वैज्ञानिक कहेंगे और साइंटिस्ट को भी .और विज्ञानियों ने कहा कि जगह कहेंगे वैज्ञानिकों ने कहा -रेडिओ वाले कहेंगे साइंटिस्ट- ओँ ने कहा -रिसर्चरों ने कहा -चल पड़ी है यह भाषा तो हम भी लिख रहें हैं कभी कभार .देवेन्द्र पांडे जी ने मर्म को पकड़ा है हिंदी के समाचार मूल हिंदी में ही हों अनुवाद की हिंदी में नहीं . अब कलम दान का क्या अनुवाद करेंगे आप संस्कृत निष्ठ हिंदी में और क्यों करेंगे .पागल कुत्ती ने काटा है क्या .भाषा बोलती हुई हो जिसे सब समझ सकें .सामाचारीय नहीं .
बहुत ही गम्भीर..
जवाब देंहटाएंबड़ी गजब और गंभीर बात
जवाब देंहटाएंऑल इंडिया रेडियो पर आकाशवाणि सुनना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंKK is correct ! On mark !!
जवाब देंहटाएं:):) बढ़िया है
जवाब देंहटाएं:):) बढ़िया है
जवाब देंहटाएंहिप्पो क्रेसी का एक और ज्वलंत उदाहरण :(
जवाब देंहटाएंइस पुराने रेडियो को देख कर थोड़ा भावुक हो गया हूँ :)) कभी हम चिढ़ कर इसे पातालवाणी कह दिया करते थे.
जवाब देंहटाएंक्या सच्चाई है !!!.... Checkout my latest flower photography
जवाब देंहटाएंwah sir...ise kahte hai samgra vyangy..bahut sahi..
जवाब देंहटाएंएकदम सच ....-:)
जवाब देंहटाएंएक दम सच :)))
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