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क्या बात है,काजल भाई.गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
Wah! Ha ha ha!Gantantr diwas kee anek shubh kamnayen!
इसका भी भला हो जाता...गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
अब इतना मनुहार है तो कर दो न भाई!:)
फटेहाल लेखक किसी भी तरह अपनी किताब की पब्लिक सिटी चाहता हैं .......:)
पुलिसिया जवाब........माँ-'बैन' करना, अपनी तो आदत में नही है ! 'गाली' भी तो कोई तेरी 'पुस्तक'में नही है !!
सही कहा है!बहुत सुन्दर प्रस्तुति!गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत खूब गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें..
सार्थक कटाक्ष।
सही है :-)यथार्थ को आईना दिखती पोस्ट ...
बेचारा।
तुम्हें सलमान बनाना है न रुशदि... बस हिंदुस्तानी बनाना है:)
हा हा हा ..क्या बात है ..यथार्थ...
इसी बहाने कोई पढ़ डालेगा..
Sateek....
जब बैन होती है तभी पढ़ते हैं
:-) :-)
बेहतरीन व्यंग्य .श्रम उनको फिर भी नहीं आती .
काजल जी,क्या बात है हर तरफ़ रुश्दी ही रुश्दी छाये हुए हैं।सादर,मुकेश कुमार तिवारी
शानदार पेशकश
नाराजगी का सबब तो रब भी नहीं जानता :)
किताब बैन कराने के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं, इस लेखक को कौन समझाए.
क्या बात है,काजल भाई.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
Wah! Ha ha ha!
जवाब देंहटाएंGantantr diwas kee anek shubh kamnayen!
इसका भी भला हो जाता...गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंअब इतना मनुहार है तो कर दो न भाई!:)
जवाब देंहटाएंफटेहाल लेखक किसी भी तरह अपनी किताब की पब्लिक सिटी चाहता हैं .......:)
जवाब देंहटाएंपुलिसिया जवाब........
जवाब देंहटाएंमाँ-'बैन' करना, अपनी तो आदत में नही है ! 'गाली' भी तो कोई तेरी 'पुस्तक'में नही है !!
सही कहा है!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनायें..
सार्थक कटाक्ष।
जवाब देंहटाएंसही है :-)यथार्थ को आईना दिखती पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंबेचारा।
जवाब देंहटाएंतुम्हें सलमान बनाना है न रुशदि... बस हिंदुस्तानी बनाना है:)
जवाब देंहटाएंहा हा हा ..
जवाब देंहटाएंक्या बात है ..यथार्थ...
इसी बहाने कोई पढ़ डालेगा..
जवाब देंहटाएंSateek....
जवाब देंहटाएंजब बैन होती है तभी पढ़ते हैं
जवाब देंहटाएं:-) :-)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्यंग्य .श्रम उनको फिर भी नहीं आती .
जवाब देंहटाएंकाजल जी,
जवाब देंहटाएंक्या बात है हर तरफ़ रुश्दी ही रुश्दी छाये हुए हैं।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
शानदार पेशकश
जवाब देंहटाएंनाराजगी का सबब तो रब भी नहीं जानता :)
जवाब देंहटाएंकिताब बैन कराने के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं, इस लेखक को कौन समझाए.
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