सोमवार, 3 मई 2010

कार्टून:- दुनिया के मज़दूरो क्या तुम एक हो गए ?


21 टिप्‍पणियां:

  1. "हा...हा..हा, बहुत बढ़िया"

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  2. अगर सारा मजदूर एक हो गया
    तो अलग अलग जगह कैसे करेगा मजदूरी
    इसलिए मजदूर अनेक हों
    नेकता के लिए यही है जरूरी
    नहीं तो खुद ही मजदूर होना होगा
    मजबूरी का घूंट खुद ही पीना होगा
    इन्‍हें अनेक ही रहने दो
    कभी एक न होने दो
    हां, नेक हो जाएं
    चाहते हैं सब यही।

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  3. मियां ओखली में सर देकर मूसलों से क्या डरना।

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  4. साथी हाथ बढाना....एक अकेला थक जाएगा......
    ये तो तगड़ी पल्लेदारी है जी........
    हा हा हा

    राम राम

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  5. आकृति के आधार पर उद्धार की संभावना क्षीण दिखती है। सुन्दर प्रस्तुति काजल भाई।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  6. मजेदार..काजल जी बढ़िया प्रस्तुति

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  7. इस एंगल से सर्वहारा को कभी देखा ही नहीं ...हा हा हा ...काजल भाई ये सब सहज हास्य के हिसाब से ठीक है किन्तु ...किन्तु...?

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  8. ये ताऊ भी गजब का हिम्मती है? ताई की साईज देखकर भी ऐसी बातें सोच रहा है? प्रणाम है इस ताऊ को तो.:)

    रामराम.

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  9. जो मकान बनाता है वह खुले आसमान में जिन्दगी बसर करता है...

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  10. "हा..हा..हा.." अब हम तो कुछ बोलेंगें नहीं विरोधी पार्टी के जो ठहरे

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  11. दुनिया भर के मजदूर एक हो गए होते तो बेचारे की ये हालत न होती।
    वैसे क्या ये कार्टून मर्दवादी नहीं है क्या। ऐसे स्त्री-पुरुष कितने होंगे दुनिया में? और इस से विपरीत स्थिति क्या आम नहीं है?

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  12. इसके लिए नया 'वाद' लाना पड़ेगा :)

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  13. अपने कार्टून से आपने, अपने को मजदूरों का हमदर्द दिखाने वालों, को भड़का दिया होगा.

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  14. धूप में चलना हो तो इस मजदूर को बहुत बढ़िया शैडो मिले सामने से! :)

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