आप के बनाये 'चिम्पू मिनी' मेरे भी पसंदीदा चरित्र रहे हैं.लोटपोट बहुत मजेदार लगती थी.किराये पर भी मिला करती थीं ये किताबें कभी! आप के कार्टून ki पहले से ही प्रशंसक रही हूँ, जब एक दिन यहाँ आप का ब्लॉग देखा तो यकायक विश्वास नहीं हुआ था.फिर aap ki .TK वाली साईट से confirm हुआ कि आप same काजल कुमार हैं. -यह तो वाकई ख़ुशी कि बात है कि अब भी लोटपोट इन्हें प्रकाशित करती है.कॉमिक्स का फ्लेवर कभी कम नहीं होता. best wishes
चिम्पू-मिन्नी भी पढ़े हैं और पान सिंह भी. लोगों में पढ़ने की आदत खत्म हो रही है जो घातक है. मुझे सुनकर ताज्जुब हुआ कि अब लोग अपनी कविताओं और गजलों को प्रकाशित करने की जगह उनकी सीडी निकलवाते हैं.
लोट पोट पढकर हम भी लोट्पोट होते रहे हैं. जब हमने आपका इंटरव्यु लिया तब हमें मालूम पडा कि आप हमारे पसंदीदा काजल कुमार जी हैं. आज भी हाथ लग जाये तो पहली फ़ुरसत में पढना पसंद हैं. बहुत शुभकामनाएं....एक आप ही हैं जिनकी वजह से बचपन मे पहुंच जाते हैं.
प्रस्तुति ही इतनी कमाल की होती है की बार बार पढ़ने और देखने का मन करता है,फिर लोटपोट क्यों ना पेश करें आपकी यह क्रियेशन...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई विनोद जी सही कह रहे हैं।
जवाब देंहटाएंहोमवर्क कराना है तो इतना तो करना ही पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंvaah....mujhe bagut pasand thee lotpot
जवाब देंहटाएंvaah,yh achha lgta hai.
जवाब देंहटाएंबेचारे पिता जी !
जवाब देंहटाएंआप के बनाये 'चिम्पू मिनी' मेरे भी पसंदीदा चरित्र रहे हैं.लोटपोट बहुत मजेदार लगती थी.किराये पर भी मिला करती थीं ये किताबें कभी!
जवाब देंहटाएंआप के कार्टून ki पहले से ही प्रशंसक रही हूँ,
जब एक दिन यहाँ आप का ब्लॉग देखा तो यकायक विश्वास नहीं हुआ था.फिर aap ki .TK वाली साईट से confirm हुआ
कि आप same काजल कुमार हैं.
-यह तो वाकई ख़ुशी कि बात है कि अब भी लोटपोट इन्हें प्रकाशित करती है.कॉमिक्स का फ्लेवर कभी कम नहीं होता.
best wishes
अरे वाह ....तो आप लोटपोट के जमाने के हैं !
जवाब देंहटाएंचिम्पू-मिन्नी भी पढ़े हैं और पान सिंह भी. लोगों में पढ़ने की आदत खत्म हो रही है जो घातक है. मुझे सुनकर ताज्जुब हुआ कि अब लोग अपनी कविताओं और गजलों को प्रकाशित करने की जगह उनकी सीडी निकलवाते हैं.
जवाब देंहटाएं@ अल्पना वर्मा ji
जवाब देंहटाएंआपके ऐसे आत्मीय शब्द पढ़कर बहुत भला लगता है. विनम्र आभार.
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
आपका कहना सही है...यह समय का वेग है किन्तु, पश्चिम की ओर देख कर भरोसा होता है कि यह अस्थाई प्रक्रिया है.
लोट पोट पढकर हम भी लोट्पोट होते रहे हैं. जब हमने आपका इंटरव्यु लिया तब हमें मालूम पडा कि आप हमारे पसंदीदा काजल कुमार जी हैं. आज भी हाथ लग जाये तो पहली फ़ुरसत में पढना पसंद हैं. बहुत शुभकामनाएं....एक आप ही हैं जिनकी वजह से बचपन मे पहुंच जाते हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
@ ताऊ रामपुरिया ji
जवाब देंहटाएंआज की भागमभाग में तो चंचल बालक की रस्साकशी और भी ज़्यादा बढ़ती जाती है :)
.... "लोटपोट" तो बस लोटपोट है जो बच्चों को लोटपोट कर देती है, .... एक अर्सा हो गया पढे हुये!!!!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया!
जवाब देंहटाएंये पत्रिकायें खत्म होती जा रही हैं। बच्चे आजकल क्या पढ़ते होंगे? या पत्रिकायें पढ़ने की बजाय टीवी/कम्प्यूटर पर चिपकते हैं?
ओ जी पुराणे दिण याद करवा दिये जी आपणे....
जवाब देंहटाएंहम भी लोट-पोट हो गये!
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