शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

कार्टून :- लोटपोट का माल...

'लोटपोट' साप्ताहिक पत्रिका मेरे पुराने कार्टून अभी भी प्रकाशित करती है
अंक 16-22 अगस्त 2009 से...

16 टिप्‍पणियां:

  1. प्रस्तुति ही इतनी कमाल की होती है की बार बार पढ़ने और देखने का मन करता है,फिर लोटपोट क्यों ना पेश करें आपकी यह क्रियेशन...

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  2. बहुत बहुत बधाई विनोद जी सही कह रहे हैं।

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  3. होमवर्क कराना है तो इतना तो करना ही पड़ेगा.

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  4. आप के बनाये 'चिम्पू मिनी' मेरे भी पसंदीदा चरित्र रहे हैं.लोटपोट बहुत मजेदार लगती थी.किराये पर भी मिला करती थीं ये किताबें कभी!
    आप के कार्टून ki पहले से ही प्रशंसक रही हूँ,
    जब एक दिन यहाँ आप का ब्लॉग देखा तो यकायक विश्वास नहीं हुआ था.फिर aap ki .TK वाली साईट से confirm हुआ
    कि आप same काजल कुमार हैं.
    -यह तो वाकई ख़ुशी कि बात है कि अब भी लोटपोट इन्हें प्रकाशित करती है.कॉमिक्स का फ्लेवर कभी कम नहीं होता.
    best wishes

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  5. अरे वाह ....तो आप लोटपोट के जमाने के हैं !

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  6. चिम्पू-मिन्नी भी पढ़े हैं और पान सिंह भी. लोगों में पढ़ने की आदत खत्म हो रही है जो घातक है. मुझे सुनकर ताज्जुब हुआ कि अब लोग अपनी कविताओं और गजलों को प्रकाशित करने की जगह उनकी सीडी निकलवाते हैं.

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  7. @ अल्पना वर्मा ji
    आपके ऐसे आत्मीय शब्द पढ़कर बहुत भला लगता है. विनम्र आभार.

    @ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
    आपका कहना सही है...यह समय का वेग है किन्तु, पश्चिम की ओर देख कर भरोसा होता है कि यह अस्थाई प्रक्रिया है.

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  8. लोट पोट पढकर हम भी लोट्पोट होते रहे हैं. जब हमने आपका इंटरव्यु लिया तब हमें मालूम पडा कि आप हमारे पसंदीदा काजल कुमार जी हैं. आज भी हाथ लग जाये तो पहली फ़ुरसत में पढना पसंद हैं. बहुत शुभकामनाएं....एक आप ही हैं जिनकी वजह से बचपन मे पहुंच जाते हैं.

    रामराम.

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  9. @ ताऊ रामपुरिया ji
    आज की भागमभाग में तो चंचल बालक की रस्साकशी और भी ज़्यादा बढ़ती जाती है :)

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  10. .... "लोटपोट" तो बस लोटपोट है जो बच्चों को लोटपोट कर देती है, .... एक अर्सा हो गया पढे हुये!!!!!

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  11. बढ़िया!
    ये पत्रिकायें खत्म होती जा रही हैं। बच्चे आजकल क्या पढ़ते होंगे? या पत्रिकायें पढ़ने की बजाय टीवी/कम्प्यूटर पर चिपकते हैं?

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  12. ओ जी पुराणे दिण याद करवा दिये जी आपणे....

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