वर्ग विभाजित समाज व्यवस्था में पुलिस को इसलिए रखता है ताकि व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह को टाला जा सके। इस व्यवस्था में जनता को तो पिसना ही है। इस में पुलिस का दोष क्या है। आप ने व्यंग्य के लिए गलत विषय चुन लिया। व्यंग्य करना था तो प्रणाली पर करते। आप के व्यंग्य ने व्यवस्था के नंगे सच को ढ़क दिया है। और पुलिस को निशाना बनाया है। देश के पुलिस की कुल संख्या में से आधे से अधिक की आय तो साधारण क्लर्क से अधिक नहीं है। वे हास्य का विषय हो सकते हैं व्यंग्य का नहीं। आप का आलेख पुलिस बिरादरी के लिए बहुत ही अपमान जनक है। यह तो अभी हिन्दी ब्लाग जगत में पुलिस पाठक इने गिने ही हैं और वे भी मित्र ही हैं। मैं ने भी आप के इस आलेख का किसी पुलिस मित्र से उल्लेख नहीं किया है। इस आलेख के आधार पर कोई भी सिरफिरा पुलिस कर्मी मीडिया में सुर्खियाँ प्राप्त करने के चक्कर में आप के विरुद्ध देश की किसी भी अदालत में फौजदारी मुकदमा कर सकता है। मौजूदा कानूनों के अंतर्गत इस मुकदमे में सजा भी हो सकती है। ऐसा हो जाने पर यह हो सकता है, कि हम पूरी कोशिश कर के उस में कोई बचाव का मार्ग निकाल लें, लेकिन वह तो मुकदमे के दौरान ही निकलेगा। जैसी हमारी न्याय व्यवस्था है उस में मुकदमा कितने बरस में समाप्त होगा कहा नहीं जा सकता। मुकदमा लड़ने की प्रक्रिया इतनी कष्ट दायक है कि कभी-कभी सजा भुगत लेना बेहतर लगने लगता है।
एक दोस्त और बड़े भाई और दोस्त की हैसियत से इतना निवेदन कर रहा हूँ कि कम से कम इस पोस्ट को हटा लें। जिस से आगे कोई इसे सबूत बना कर व्यर्थ परेशानी खड़ा न करे।
आप का यह आलेख व्यंग्य भी नहीं है, आलोचना है, जो तथ्य परक नहीं। यह पुलिस समुदाय के प्रति अपमानकारक भी है। मैं अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत लोगों को परेशान होते देख चुका हूँ। प्रभाष जोशी पिछले साल तक कोटा पेशियों पर आते रहे, करीब दस साल तक। पर वे व्यवसायिक पत्रकार हैं। उन्हें आय की या खर्चे की कोई परेशानी नहीं हुई। मामला आपसी राजीनामे से निपटा। मुझे लगा कि आप यह लक्जरी नहीं भुगत सकते। अधिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ।
नमस्कार, आप का कार्टून बहुत सुंदर लगा, ओर हम तो संजय बेंगाणी जी की टिपण्णी से सहमत है. ओर यह दिनेश जी है कोन???? अरे अगर हम अपने देश मै हो रहे गलत कामो के बारे बात नही करेगे, ओर चुपचाप सहते रहे तो क्या हम गुलाम नही हुये, अगर दिनेश जी हम सब के शुभ चिंतित है तो खुल कर सामने आये, ओर अपनी राय खुल कर बताये, इन का परिचय तो है नही , इन के नाम पर कलिक करो तो आगे रास्ता बन्द, भाई किस किस पर मुकद्दमा करोगे?? अगर आप शरीफ़ आदमी है तो सामने आ कर मित्र की तरह से सलाह देवे, आप से निवेदन है. धन्यवाद मुझे शिकायत है पराया देश छोटी छोटी बातें नन्हे मुन्हे
राज जी @ पंगेबाज जी को दिनेश राय जी ने यही कहा था और इसी प्रकार की टिप्पणी अविनाश वाचस्पती की जिस पोस्ट को नटराज जी ने छापा है उस पर भी की थी.उनकी राय को ही है बाकी सब लोगो तक पहुचा रहा हू.जैसे वकील का प्रोफ़ेशन है वैसे भी बाकी लोगो का भी.संविधान मे सभी भारतीयो के हम एक जैसे है अगर वकील के लिये कुछ नही लिख सकते तो फ़िर बाकी एक लिये क्यॊ ? यही मेरा सवाल है जो हर ब्लोग पर हर ब्लोगर के सामने उठता रहेगा.दिनेश जी या फ़िर आपको जवाब तो देना होगा आज नही तो कल.क्यो उन्हे धमकी देने मे बाद भी दिनेश राय जी मासूम और महान बने हुये है?एक डाकटर एक नेता एक अध्यापक एक पुलिस वाला इन पर क्यो लिख रहे है ? अगर एक वकील पर लेखन पर धमकी सुन कर आप चुप क्यो है इस सवाल का जवाब आपने देना ही है आज नही तो कल ?
हाहा !! लालगढ़ थाने से ही आया है/
जवाब देंहटाएंवाह काजल जि, पुलिस वालों पर डंडा .....? मजा आ गया.......बधाई
जवाब देंहटाएंऔकात पता लगी।
जवाब देंहटाएंलगता तो यही है कि लालगढ़ से ही आया है |
जवाब देंहटाएंलालगढ़ से ट्रांसफर के बाद नये थाने का पता नोट करें :
जवाब देंहटाएंग्राम - जमोला , चित्रकूट , उत्तर प्रदेश
सही तस्वीर है थाने का .
जवाब देंहटाएंअरे नही अली भाई आप हमारे बस्तर का हक़ मार रहे हैं।
जवाब देंहटाएंवर्ग विभाजित समाज व्यवस्था में पुलिस को इसलिए रखता है ताकि व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह को टाला जा सके। इस व्यवस्था में जनता को तो पिसना ही है। इस में पुलिस का दोष क्या है। आप ने व्यंग्य के लिए गलत विषय चुन लिया। व्यंग्य करना था तो प्रणाली पर करते। आप के व्यंग्य ने व्यवस्था के नंगे सच को ढ़क दिया है। और पुलिस को निशाना बनाया है।
जवाब देंहटाएंदेश के पुलिस की कुल संख्या में से आधे से अधिक की आय तो साधारण क्लर्क से अधिक नहीं है। वे हास्य का विषय हो सकते हैं व्यंग्य का नहीं।
आप का आलेख पुलिस बिरादरी के लिए बहुत ही अपमान जनक है। यह तो अभी हिन्दी ब्लाग जगत में पुलिस पाठक इने गिने ही हैं और वे भी मित्र ही हैं। मैं ने भी आप के इस आलेख का किसी पुलिस मित्र से उल्लेख नहीं किया है। इस आलेख के आधार पर कोई भी सिरफिरा पुलिस कर्मी मीडिया में सुर्खियाँ प्राप्त करने के चक्कर में आप के विरुद्ध देश की किसी भी अदालत में फौजदारी मुकदमा कर सकता है। मौजूदा कानूनों के अंतर्गत इस मुकदमे में सजा भी हो सकती है। ऐसा हो जाने पर यह हो सकता है, कि हम पूरी कोशिश कर के उस में कोई बचाव का मार्ग निकाल लें, लेकिन वह तो मुकदमे के दौरान ही निकलेगा। जैसी हमारी न्याय व्यवस्था है उस में मुकदमा कितने बरस में समाप्त होगा कहा नहीं जा सकता। मुकदमा लड़ने की प्रक्रिया इतनी कष्ट दायक है कि कभी-कभी सजा भुगत लेना बेहतर लगने लगता है।
एक दोस्त और बड़े भाई और दोस्त की हैसियत से इतना निवेदन कर रहा हूँ कि कम से कम इस पोस्ट को हटा लें। जिस से आगे कोई इसे सबूत बना कर व्यर्थ परेशानी खड़ा न करे।
आप का यह आलेख व्यंग्य भी नहीं है, आलोचना है, जो तथ्य परक नहीं। यह पुलिस समुदाय के प्रति अपमानकारक भी है। मैं अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत लोगों को परेशान होते देख चुका हूँ। प्रभाष जोशी पिछले साल तक कोटा पेशियों पर आते रहे, करीब दस साल तक। पर वे व्यवसायिक पत्रकार हैं। उन्हें आय की या खर्चे की कोई परेशानी नहीं हुई। मामला आपसी राजीनामे से निपटा। मुझे लगा कि आप यह लक्जरी नहीं भुगत सकते।
अधिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ।
अनिल भाई अगला ट्रांसफर बस्तर के पते पर करवा लेंगे ! अब ठीक हैं ना !
जवाब देंहटाएंना रे! डाकू को मारने जाना है. एक डाकू को मारने के लिए सिर्फ हजार जवानों को भेजा जा रहा है. डर नहीं लगेगा क्या? :)
जवाब देंहटाएंदेख नही रहे....चप्पल पहन कर कैसे भागूँगा यदि डाकू पीछे पड गया तो?
जवाब देंहटाएंबढिया!!
काजल जी ,आप के बनाये कार्टून हमें पसंद आते हैं.
जवाब देंहटाएंमित्र और शुभचिंतक होने के नाते दिनेश जी की दी गयी सलाह पर ध्यान दें ..
[अभी हाल ही में कुछ पोस्ट इस सिलसिले में ताज़ा पढ़ी जा सकती हैं ,जहाँ एक टॉप के ब्लॉगर को अपना ब्लॉग हटाना पड़ा है.]
नमस्कार, आप का कार्टून बहुत सुंदर लगा, ओर हम तो संजय बेंगाणी जी की टिपण्णी से सहमत है.
जवाब देंहटाएंओर यह दिनेश जी है कोन????
अरे अगर हम अपने देश मै हो रहे गलत कामो के बारे बात नही करेगे, ओर चुपचाप सहते रहे तो क्या हम गुलाम नही हुये, अगर दिनेश जी हम सब के शुभ चिंतित है तो खुल कर सामने आये, ओर अपनी राय खुल कर बताये, इन का परिचय तो है नही , इन के नाम पर कलिक करो तो आगे रास्ता बन्द, भाई किस किस पर मुकद्दमा करोगे??
अगर आप शरीफ़ आदमी है तो सामने आ कर मित्र की तरह से सलाह देवे, आप से निवेदन है.
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
बहुत अच्छा..
जवाब देंहटाएंkahin tabel k neeche se kuch lene ki jugad to nahin laga raha........
जवाब देंहटाएंराज जी @ पंगेबाज जी को दिनेश राय जी ने यही कहा था और इसी प्रकार की टिप्पणी अविनाश वाचस्पती की जिस पोस्ट को नटराज जी ने छापा है उस पर भी की थी.उनकी राय को ही है बाकी सब लोगो तक पहुचा रहा हू.जैसे वकील का प्रोफ़ेशन है वैसे भी बाकी लोगो का भी.संविधान मे सभी भारतीयो के हम एक जैसे है अगर वकील के लिये कुछ नही लिख सकते तो फ़िर बाकी एक लिये क्यॊ ? यही मेरा सवाल है जो हर ब्लोग पर हर ब्लोगर के सामने उठता रहेगा.दिनेश जी या फ़िर आपको जवाब तो देना होगा आज नही तो कल.क्यो उन्हे धमकी देने मे बाद भी दिनेश राय जी मासूम और महान बने हुये है?एक डाकटर एक नेता एक अध्यापक एक पुलिस वाला इन पर क्यो लिख रहे है ? अगर एक वकील पर लेखन पर धमकी सुन कर आप चुप क्यो है इस सवाल का जवाब आपने देना ही है आज नही तो कल ?
जवाब देंहटाएंभाई मुझे तो डर लग रहा है. यहां तो पता नही क्या क्या बाते होने लग गई.:)
जवाब देंहटाएंपर कार्टून तो पसंद आया...अगर आपको डर लगता हो और हटाना चाहें तो मुझे भेज दिजियेगा मैं लगा लूंगा.:)
रामराम.
कार्टून अच्छा लगा लेकिन हकीक़त यही नहीं है, हम हमेशा से पुलिस को ही कठघरे में खडा क्यों करते हैं,
जवाब देंहटाएंराजनीती कम जिम्मेदार नहीं है????????
kaazal bhai ye mahila thane ka draayvar tha
जवाब देंहटाएंदिनेश जी का तो नहीं पता, पर ऐसे तो किसी के भी बारे मे लिखने या छापने पर होना चाहिये. फिर तो हो गयी छुट्टी. पर कोई वकील ही राय दे तभी अच्छा होगा.
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