मंगलवार, 10 नवंबर 2009

कार्टून:- आओ फिर कुएं के मेंढक से आसमां की उम्मीद करें


17 टिप्‍पणियां:

  1. काजल भाई कुएं के मेढक से आसमान की उम्मीद हमने कभी नहीं की ! और...
    मुंबई पर आंतकवादी हमले के समय 'रूप के राजा' को भी बिल में दुबका हुआ पाया है !
    फिलहाल इंतजार है राष्ट्रवाद के ठेकेदारों के बोल वचन का ....!
    संकीर्णतावाद और घृणा की राजनीति से देश का कितना भला होने वाला है ये तो वे ही जाने !

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  2. ये भारतीय भाषाओं के अहितकारी तत्व है. काश इन्हे चुहामार दवा से निपटाया जा सकता.

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  3. बहुत सुंदर जी, सच मे कुएं का मेंडक ही है

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  4. शायद अभी तक कोई ऎसी दवा इजाद नहीं हो पाई है कि जो इनसे मुक्ति दिला सके....

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  5. kajal bhai aapne mns ke logo ko chuha kaha hai par kahi ye chuha is desh ki loktantrik dharmnirpeksh dhanche ko kutar na jaye, isliye hitler ke in prashansko ko bharat ko utne saal peechhe le jaane se rokna hoga jitne saal hitler ki nafrat ne Germany ko peeche kar diya tha.

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  6. title bahut sateek hai aur cartoon bhi.
    Yahi to khaseeyat hoti hai ek cartoonist mein ki sirf kuchh lakeeron se ek arthpurn kahani kah sakte hain.
    I admire your art!

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  7. काजल जी, बहुत सार्थक और सामायिक व्यंग...सभी सौंदर्य परखी लोगों की तरह आपकी रूपसी-सुंदरी अत्यंत मनभावन लगी

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  8. हाय हाय! गोरा रंग काला पड़ जायेगा। पांवों में छाला पड़ जायेगा!
    देखियेगा, समय बीतेगा और मेढ़क बनेगा टोड!

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  9. @ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
    जी, मैं आपसे सहमत हूं...मै गुस्से में नहीं था..मुझे हंसी आ रही थी इनकी करतूतों पर...इनका बचकानापन देखकर..(सोचकर भी अजीब लगता है कि राज ठाकरे कई साल पहले दिल्ली प्रवास के दौरान कभी मेरा अच्छा मित्र हुआ करता था..क्योंकि हम दोनों कार्टून बनाते थे, रंगमंची थे...पर नहीं, वह ये व्यक्ति तो कभी नहीं था..)

    @ ali
    ऐसे लोगों की दुकान ज़्यादा देर नहीं चलती..अगर ऐसा न होता तो ये प्लेग पूरे भारत में फैला चुके होते. भारत का हरेक मतदाता अगर इनकी मान लेता तो यहां सरकारें यूं कभी न बदलतीं. बकरे की मां है कितने दिन खैर मनाएगी..

    @ संजय बेंगाणी
    काहे दवाई वेस्ट करने का...काठ की हांडी है कितनी बार चढ़ लेगी.

    @ nafis alam
    हमारे लोकतंत्र को कुतर डालना हंसी-ठठ्ठ कहां है भाई...हमरा लोकतंत्र हज़ारों साल पुराना है, ये तो हमारे खून में बसता है...अलबत्ता कभी कभी ग्रहण के दीगर मौक़े ज़रूर आते हैं

    @ ज्ञानदत्त पाण्डेय| Gyandutt Pandey भगवान करे ऐसा हो जाए, यह टोड टोड ही रह जाए...

    @ आप सभी अन्य मित्रों का भी विनम्र हार्दिक आभार कि आप समय समय पर प्रतिक्रियास्वरूप मेरा उत्साहवर्धन कर, मेरी रचनाशीलता को पंख लगाए रहते हैं...आभार

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