बहुत सुन्दर प्रस्तुति...! -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (25-11-2013) को "उपेक्षा का दंश" (चर्चा मंचःअंक-1441) पर भी है! -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
काजल जल से भीग कब, देता अश्रु भिगोय | चेहरे पे कालिख लगे, जाती गरिमा खोय | जाती गरिमा खोय, सफलता सर चढ़ बैठी | बने स्वयंभू ईश, चाल चल ऐंठी ऐंठी | करता हलका कार्य, तहलका का यह छल बल | महाचोर बदनाम, चुरा नैनों का काजल ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (25-11-2013) को "उपेक्षा का दंश" (चर्चा मंचःअंक-1441) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
काजल जल से भीग कब, देता अश्रु भिगोय |
जवाब देंहटाएंचेहरे पे कालिख लगे, जाती गरिमा खोय |
जाती गरिमा खोय, सफलता सर चढ़ बैठी |
बने स्वयंभू ईश, चाल चल ऐंठी ऐंठी |
करता हलका कार्य, तहलका का यह छल बल |
महाचोर बदनाम, चुरा नैनों का काजल ||
गैरतमंद तो थूके भी नहीं
जवाब देंहटाएंभारत एवं भारतीय समाज की छवि को जितना चल चित्र एवं राजनीति ने विकृत कर धूमिल किया है, उतना कदाचित ही किसी ने किया हो.....
जवाब देंहटाएंजबरदस्त कटाक्ष.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इस दीवार के कान मर गये हैं और ईंटें घमण्ड से फूल गयी हैं।
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