Kajal bhai, aap ke kartoon bahut prabhavit karte hain. srijangatha par bhi aap ka kartoon dekhta hoon. darasal kartoon ke liye keval teekhi antardrishti ki hi jaroorat nahi hoti balki drishy ke andhere ko kheechkar bahar lana padata hai aur yah sabke vash ki bat nahin hai. isliye main kartoon ko behad rachnatmak aur kathin vidha ke roop men dekhta hoon. dhanyvad.
डरे हुए कमअक्ल लोग अपने से कहीं ज्यादा भरोसा उनमें रखते हैं जो भरोसों की surrogacy के धंधे में हैं ... गले तक. अनुष्ठान के नाम जानवर को परोसा खाना गर भूखा खा ले तो क्रुद्ध जजमान खून तक बहा सकता है... वही जजमान जिसने जीते जी तो माँ-बाप पूछे नहीं पर मरने के बाद उनके लिए भोज परोसे और वो भी रंग-बिरंगे बेजुबान जानवरों को ...(खैर उनके लिए तो महज दावत हुई). कभी कभी सोचता हूँ, कैसे myopic लोग हैं वो जिनकी नज़र ख़ुद से आगे नहीं जाती. बस्स्स्स...बात दूर तलक चली जाएगी..
बहरहाल...बाक़ी सभी मित्रों के लिए बक़ौल निदा फाज़ली "घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये".
गोरे तु तो हमारा खुन पी चुका है फ़िरंगी कही का ना हो तो.... चल भाग यहां से....
जवाब देंहटाएंपंडित जी : भैये तुमने दिया भी क्या है ? हा हा हा !
जवाब देंहटाएंKajal bhai, aap ke kartoon bahut prabhavit karte hain. srijangatha par bhi aap ka kartoon dekhta hoon. darasal kartoon ke liye keval teekhi antardrishti ki hi jaroorat nahi hoti balki drishy ke andhere ko kheechkar bahar lana padata hai aur yah sabke vash ki bat nahin hai. isliye main kartoon ko behad rachnatmak aur kathin vidha ke roop men dekhta hoon. dhanyvad.
जवाब देंहटाएंये स्पष्ट किया जाए कि ये कार्टून कुत्तों पर है कि पंडित जी पर :)
जवाब देंहटाएंHa,ha,ha...comments bhi bade mazedaar hain!
जवाब देंहटाएं... २०१० का सुपरहिट कार्टून... बहुत बहुत बधाई!!!
जवाब देंहटाएं@काजल भाई
जवाब देंहटाएंशिकायत वाज़िब है उसकी :)
@दिनेश भाई
मुझे तो दोनों पर लग रहा है "कुत्ती.भूख" और "समरथ के भेदभाव" पर !
पर काजल भाई क्या कहेंगे देखते हैं !
बात जायज है जी इनकी। रंग के आधार पर आरक्षण मिलना चाहिये इन्हें।
जवाब देंहटाएंkale kutto ka thoda bhi sukh bardast nahi hota?
जवाब देंहटाएंPandit ji ke sivay kise in par daya aati h?
@ डा.सुभाष राय जी
जवाब देंहटाएं@ भाई "वत्स" जी
@ अली भाई
डरे हुए कमअक्ल लोग अपने से कहीं ज्यादा भरोसा उनमें रखते हैं जो भरोसों की surrogacy के धंधे में हैं ... गले तक. अनुष्ठान के नाम जानवर को परोसा खाना गर भूखा खा ले तो क्रुद्ध जजमान खून तक बहा सकता है... वही जजमान जिसने जीते जी तो माँ-बाप पूछे नहीं पर मरने के बाद उनके लिए भोज परोसे और वो भी रंग-बिरंगे बेजुबान जानवरों को ...(खैर उनके लिए तो महज दावत हुई). कभी कभी सोचता हूँ, कैसे myopic लोग हैं वो जिनकी नज़र ख़ुद से आगे नहीं जाती. बस्स्स्स...बात दूर तलक चली जाएगी..
बहरहाल...बाक़ी सभी मित्रों के लिए बक़ौल निदा फाज़ली "घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये".
आपका या आपके कार्टून अच्छे लगे, बधाई मेरे व्लाग पर आने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेबाक समीक्षा के लिए आभार
nice...........................
जवाब देंहटाएं"यकीनन बहुत बढ़िया..."
जवाब देंहटाएंab pandit ji ka kya dosh!!
जवाब देंहटाएंkale dhan ka paap kale kutte ko roti daal kar hi mitaya ja sakta hai..hai na kajal bhai...?
वाह क्या बात है, वैसे सोचने वाली बात तो है...
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंकार्टून अच्छे लगे....
जवाब देंहटाएंक्या बात है....
यह होती है कार्टून की ताकत...
जवाब देंहटाएंएक चित्र.... और उसके पीछे ख्याल और चुनौतियां बहुत साड़ी...
बहुत सुन्दर...
और सच भी है.. कभी तो काले रंग को भी भाव मिले!!!
:-)
जयंत
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जवाब देंहटाएंकाजल जी आपके कार्टून बहुत बढ़िया है पूरी सच्चाई दिखती है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
ये मेरा ब्लिग है http://ashishshukl.blogspot.in/