कवियों के मित्र होना इतना खतरनाक~!बस..अलमारी के ऊपर रखी खोपड़ी ही दिखाई दी..वैसे गायक और कवि दोनों एक ही श्रेणी के हैं ...उनके मित्र डर डर के रहते हैं..कहीं कविता/गाना न शुरू कर दे .:)
अब जाकर मिली है...जबसे हम समीर जी के घर से आये हैं ...हमारी खोपड़ी नहीं मिल रही थी...समीर जी ने आलमारी के ऊपर रख दी..... बहुत बेइंसाफी है.... हे राम...!! बहुत बढ़िया ...हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा मेरी भी हंसी नहीं रुक रही है....!! हा हा हा हा हा ... बहुत ही बढ़िया...आपको दो-चार ट्रक बधाई दे रहे हैं... हाँ नहीं तो...!!
सच कहा काजल जी । एक बार एक कवि ने कमरा बंद कर ऐसे ही मुझ पर डेढ़ सौ कविताएं फटकार दी थीं । बेहोश होते होते रह गया था उस दिन । हो जाता तो अच्छा होता । उस पीड़ा से मुक्ति तो मिलती ।
हा हा हा बांध बांध कर कविता सुनाई जा रही है । बस ये और पता चल जाता कि पैग उडन जी ने उनको टेप हटा कर लगवाई थी या टेप में ही स्ट्रा घुसेड कर :) :) :) :) :) :) :) :)
kajalji bahut samay se dekh raha hun aapke kartoon ghise pite vishayo par hi ban rahe hai, 33 tippaniya dekh kar aisa nahi lag raha hai, par yakeen maaniye isme kuch bhi naya nahi hai aur dekhne-padne par muskaan bhi nahi aati
बहुत बढिया। --------- क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है? अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
खो गई है मेरी कविता पिछले दो दशको से. वह देखने में, जनपक्षीय है कंटीला चेहरा है उसका जो चुभता है, शोषको को. गठीला बदन, हैसियत रखता है प्रतिरोध की. उसका रंग लाल है वह गई थी मांगने हक़, गरीबों का. फिर वापस नहीं लौटी, आज तक. मुझे शक है प्रकाशकों के ऊपर, शायद, हत्या करवाया गया है सुपारी देकर. या फिर पूंजीपतियो द्वारा सामूहिक वलात्कार कर, झोक दी गई है लोहा गलाने की भट्ठी में. कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा उसे शहर में.... गावों में... खेतों में.. और वादिओं में..... ऐसा लगता है मुझे मिटा दिया गया है, उसका बजूद समाज के ठीकेदारों द्वारा अपने हित में. फिर भी विश्वास है लौटेगी एक दिन मेरी खोई हुई कविता. क्योंकि नहीं मिला है हक़..... गरीबों का. हाँ देखना तुम वह लौटेगी वापस एक दिन, लाल झंडे के निचे संगठित मजदूरों के बिच, दिलाने के लिए उनका हक़.
udantashtri ji ke paas se hokar aaye ho kya.
जवाब देंहटाएंहा हा!! राम त्यागी बंधे बैठे हैं. :)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया काजल जी....सही दर्शाया
जवाब देंहटाएं...और आलमारी के ऊपर आपसे पहले मित्र हैं !
जवाब देंहटाएं...और आलमारी के ऊपर आपसे पहले मित्र हैं !
जवाब देंहटाएं...और आलमारी के ऊपर आपसे पहले मित्र हैं :)
जवाब देंहटाएंमजेदार...कवियों को यह भेजें...
जवाब देंहटाएंअब तो यही होना है.कवियो का :))
जवाब देंहटाएंसमीर जी द्वारा आज पकड़ ही लिया गया त्यागी जी को...
जवाब देंहटाएंहा हा हा....मजेदार!
जवाब देंहटाएंमजेदार
जवाब देंहटाएंजैसे को तैसा मिला, बड़ा मज़ा आया.
जवाब देंहटाएंबहुत नाईंसाफ़ी है ठाकुर।
जवाब देंहटाएंले, फ़िर आयेगा किसी कवि के घर?
हँसी नहीं रोक पा रहा ....वैसे अलमारी के ऊपर वाला पिंजर देखकर डर लागे है बहुत ....
जवाब देंहटाएंक्यूँ हमारे समीर जो को बदनाम कर रहे हो भाई :-)
कवियों के मित्र होना इतना खतरनाक~!बस..अलमारी के ऊपर रखी खोपड़ी ही दिखाई दी..वैसे गायक और कवि दोनों एक ही श्रेणी के हैं ...उनके मित्र डर डर के रहते हैं..कहीं कविता/गाना न शुरू कर दे .:)
जवाब देंहटाएंअब जाकर मिली है...जबसे हम समीर जी के घर से आये हैं ...हमारी खोपड़ी नहीं मिल रही थी...समीर जी ने आलमारी के ऊपर रख दी.....
जवाब देंहटाएंबहुत बेइंसाफी है....
हे राम...!!
बहुत बढ़िया ...हा हा हा हा हा हा
हा हा हा हा हा
मेरी भी हंसी नहीं रुक रही है....!!
हा हा हा हा हा ...
बहुत ही बढ़िया...आपको दो-चार ट्रक बधाई दे रहे हैं...
हाँ नहीं तो...!!
मजेदार
जवाब देंहटाएंआह सुबह सुबह कलेजा बैठ गया !हंसने की हिम्मत भी नहीं हो रही !
जवाब देंहटाएंअदा जी की खोपड़ी है..और मैं नाहक परेशान था कि जाने किसकी रह गई.
जवाब देंहटाएंहा हा हा !
जवाब देंहटाएंलो जी हमने भी कसम तोड़ दी
टूटी फूटी जो लिखते थे ,
आज से वो भी छोड़ दी ।
मजेदार कार्टून।
जवाब देंहटाएंहा हा हा बहुत बडिया।
जवाब देंहटाएंbaap re....tauba tauba..ab nahi likhenge kavita
जवाब देंहटाएंHa,ha,ha!
जवाब देंहटाएंएक नंबर कार्टून...सर....छा गए
जवाब देंहटाएंहा हा हा जबर्दस्त्त...
जवाब देंहटाएंसच कहा काजल जी । एक बार एक कवि ने कमरा बंद कर ऐसे ही मुझ पर डेढ़ सौ कविताएं फटकार दी थीं । बेहोश होते होते रह गया था उस दिन । हो जाता तो अच्छा होता । उस पीड़ा से मुक्ति तो मिलती ।
जवाब देंहटाएंअब हम क्या बोलें.कविता सुनने वालों के ऊपर जुल्म की बातें हो रही हैं.पर कविता लिखने वालों पे जो जुल्म हो रहा है उसका क्या?!!!हा हा!!
जवाब देंहटाएंहा हा हा बांध बांध कर कविता सुनाई जा रही है । बस ये और पता चल जाता कि पैग उडन जी ने उनको टेप हटा कर लगवाई थी या टेप में ही स्ट्रा घुसेड कर :) :) :) :) :) :) :) :)
जवाब देंहटाएंहा हा हा काजल जी आप तो कवि नहीं हैं ना....... डरा दिया
जवाब देंहटाएंसुना लो भाई. तुम्हारी भी बारी आयेगी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर। इसीलिए मैंने कविता लिखनी बहुत पहले बंद कर दी है।
जवाब देंहटाएं--------
भविष्य बताने वाली घोड़ी।
खेतों में लहराएँगी ब्लॉग की फसलें।
समीर जी यह लठ्ठ किस लिये? आप ने राम त्यागी के हाथ पेर तो पहले से ही बांध दिये :) अब हमे तो डर लग रहा है....अगर कभी कोई कवि मुझे प्लेन मै मिल जाये तो??
जवाब देंहटाएंkajalji bahut samay se dekh raha hun aapke kartoon ghise pite vishayo par hi ban rahe hai, 33 tippaniya dekh kar aisa nahi lag raha hai, par yakeen maaniye isme kuch bhi naya nahi hai aur dekhne-padne par muskaan bhi nahi aati
जवाब देंहटाएंव्यंग्यपूर्ण।
जवाब देंहटाएंNICE
जवाब देंहटाएंsukra hai main kavi nahi hun....
जवाब देंहटाएंmast cartoon hai bhai
बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएं---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
बड़ा ही सटीक कार्टून
जवाब देंहटाएंखो गई है
जवाब देंहटाएंमेरी कविता
पिछले दो दशको से.
वह देखने में, जनपक्षीय है
कंटीला चेहरा है उसका
जो चुभता है,
शोषको को.
गठीला बदन,
हैसियत रखता है
प्रतिरोध की.
उसका रंग लाल है
वह गई थी मांगने हक़,
गरीबों का.
फिर वापस नहीं लौटी,
आज तक.
मुझे शक है प्रकाशकों के ऊपर,
शायद,
हत्या करवाया गया है
सुपारी देकर.
या फिर पूंजीपतियो द्वारा
सामूहिक वलात्कार कर,
झोक दी गई है
लोहा गलाने की
भट्ठी में.
कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा उसे
शहर में....
गावों में...
खेतों में..
और वादिओं में.....
ऐसा लगता है मुझे
मिटा दिया गया है,
उसका बजूद
समाज के ठीकेदारों द्वारा
अपने हित में.
फिर भी विश्वास है
लौटेगी एक दिन
मेरी खोई हुई
कविता.
क्योंकि नहीं मिला है
हक़.....
गरीबों का.
हाँ देखना तुम
वह लौटेगी वापस एक दिन,
लाल झंडे के निचे
संगठित मजदूरों के बिच,
दिलाने के लिए
उनका हक़.
हा हा हा
जवाब देंहटाएंकाजल कुमार हमेशा ही मजेदार बनाते हैं.
बेचारा आदमी...!!!!!!!!!
च्च्च्च्च.!!!!!!!!!!!!!