काजल भाई , संभल जाइये ! पिछले कई दिनों से आपकी...रचना..."बेलनास्त्र" के प्रचुर प्रयोग पर उतारू है ! देखिये ना इस भाट अर्थशास्त्री की हालत कितनी 'बेलनीय' हो गई है ! इसकी संहार शक्ति से भयभीत ब्लागर मित्र की 'साडी स्तुति नाद' के बाद मैं भी बेलनोत्सव मनाने और बेलनाश्रम की स्थापना करने की चिंता में लग गया हूँ !
एक बार फिर आपका वर्तमान व्यवस्था पर तीक्ष्ण व्यंग...सरकारी भोंपू के भी घर में तरकारी भाजी तो आती ही होगी, पक्का किसी ईमानदर अधिकारी का घर होगा वरना महगाई का भार तो ऊपरी कमाई से पता ही न चलता ... साधू
भाई जूतों का इस्तेमाल किया होता तो दिल को सुकून मिलता
जवाब देंहटाएंपेश करेंगे आँकड़ा जो कहती सरकार।
जवाब देंहटाएंऐसे हैं विद्वान तो उचित लगी यह मार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
चौंतीस वर्ष की शादी में सब्जी खरीदने का हुनर तो तीस बरस पहले ही नष्ट हो चुका।
जवाब देंहटाएंसाड़ी का डिजाइन अच्छा है!
जवाब देंहटाएंमहंगाई का
जवाब देंहटाएंदमदार नाक
निर्माण फार्मूला
कोई चुरा न ले
ये यूनीक आइडिया
इसे पेटेंट करा लो
या पैंट पहना लो
काजल जी।
badhiya:)
जवाब देंहटाएंमज़ेदार
जवाब देंहटाएंकाजल भाई , संभल जाइये ! पिछले कई दिनों से आपकी...रचना..."बेलनास्त्र" के प्रचुर प्रयोग पर उतारू है ! देखिये ना इस भाट अर्थशास्त्री की हालत कितनी 'बेलनीय' हो गई है !
जवाब देंहटाएंइसकी संहार शक्ति से भयभीत ब्लागर मित्र की 'साडी स्तुति नाद' के बाद मैं भी बेलनोत्सव मनाने और बेलनाश्रम की स्थापना करने की चिंता में लग गया हूँ !
एक बार फिर आपका वर्तमान व्यवस्था पर तीक्ष्ण व्यंग...सरकारी भोंपू के भी घर में तरकारी भाजी तो आती ही होगी, पक्का किसी ईमानदर अधिकारी का घर होगा वरना महगाई का भार तो ऊपरी कमाई से पता ही न चलता ...
जवाब देंहटाएंसाधू
इन अर्थशास्त्री महोदय को बेच कर भी बदले में एक टाईम की सब्जी नहीं आयेगी:)
जवाब देंहटाएंयूँ प्रतीत होता है, बेल्नास्त्र से भली-भांति परिचित हैं, क्यूंकि अनुभव भी अविष्कार की जननी हो सकती.
जवाब देंहटाएंफिर, एक बार ज़बरदस्त...
हा हा हा हा ,,,,,
वाह आज दिन भर की थकान दूर हो गई.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
हा हा हा हा :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
वाह जी ...अभी तक तो आटे-दाल का भाव ही मालूम होता था अब आलू प्याज का भाव भी मालूम हो जाएगा ...
जवाब देंहटाएंआपको कार्टून बनाने की सूझ रही है - यहां घर में दाल बननी बन्द हो गई है! :(
जवाब देंहटाएंअब तो साहब न दाल मिल रही है, न सब्जी.
जवाब देंहटाएंअर्थशास्त्री: अरी भाग्यवान! नाराज़ क्यों होती हो?
जवाब देंहटाएंबोलने 'में' पैसे थोडे न लगते हैं,
पर (हें-हें-हें)बोलने 'के' पैसे तो
मिलते हैं...
काजलकुमारजी आपकी कार्टुन बहुत अच्छी लगी क्या मै इसे साभार करके आपको क्रेडिट देकर अपनी साइटमै यूज कर सकता हूँ
जवाब देंहटाएंकाजलकुमारजी आपकी कार्टुन बहुत अच्छी लगी क्या मै इसे साभार करके आपको क्रेडिट देकर अपनी साइटमै यूज कर सकता हूँ
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