बुधवार, 11 अगस्त 2010

मेरी त्रिपोली (लीबिया) यात्रा.

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त्रिपोली, लीबिया की राजधानी है. यह भूमध्यसागर(Mediterranean) के किनारे अफ्रिका के उत्तरी किनारे पर स्थित है किन्तु इसकी संस्कृति अरबी है. यह यूरोप के बहुत नज़दीक है इसलिए आए दिन यहां से समुद्र के रास्ते यूरोप भागने वालों के पकड़े जाने व डूबने के समाचार आते रहते हैं. भागने वालों का पहला निशाना माल्टा होता है.
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त्रिपोली बंदरगाह के किनारे, समुद्र-तट पर बना ग्रीन-स्क्वेयर यहां का अकेला केंद्र-स्थल है. अक्सर यहां शाम को लोग आते हैं. कुछ साल पहले सरकार ने राजनैतिक कार्यकलापकों को यहीं पर सार्वजनिक फांसी देकर कई दिन लटकाए रखा था. सरकार की आंखें चारों ओर हैं. भारतीय लोकतंत्र की महत्ता समझने का अच्छा ज़रिया है यत्राएं.
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सहारा रेगिस्तान की बानगी आप त्रिपोली में भी यूं देख सकते हैं. गाड़ियों पर आपको रेत की पर्तें आमतौर से दिखेंगी.
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टैक्सी-टैक्सी…त्रिपोली की टैक्सियां. यहां न तो घरों के नंबर हैं न ही कोई डाक-प्रणाली. इसलिए शहर में किसी को लेने जाना या चिट्ठी पहुंचाना खूब चलन में हे. त्रिपोली में एक भारतीय रेस्टोरेंट है पर वह भी रमादान (रमज़ान) के चलते आजकल बंद मिला.
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अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से 2003 में मुक्ति के बाद, यहां निर्माण-कार्य बहुत तेज़ी से हो रहे हैं. लेकिन यहां के हर कार्य में दिल्ली-राष्ट्रमंडल खेलों के निर्माण का सा ही हाल है, ऊपर से नीचे तक. यहां केवल 3-4 लीबियन बैंक ही काम करते हैं.  इन बैंकों में, एक सीमा से अधिक पैसा जमा कराने पर सरकार की आज्ञा चाहिये इसलिए नज़दीकी देश तुनीसिया के बैंकिंग-क्षेत्र की काफी पूछ है.
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यहां 1 दीनार (36 रूपये) में खूब सारी रोटियां (कुब्जा) मिलती हैं. शिक्षा-चिकित्सा मुफ़्त है, जैसा कि हमारे यहां म्र्यूनिसीपैल्टी के  अधिकार-क्षेत्र में होता है, भगवान किसी को बीमार करे तो केवल उसे, जिसे अरबी आती हो ताकि अस्पताल में अपनी बीमारी समझा सके. 1+1 की नीति के चलते लीबियाई नागरिकों की नौकरी के नाम पर बल्ले-बल्ले है.  सरकार हर नागरिक को मुफ़्त देने के लिए मकान बनाती रहती है. तेल की महिमा अपरंपार है.
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जंजूर में सड़क किनारे कुछ दुकानें... एकदम भारत-सरीखी.
त्रिपोली में सड़कों के किनारे अफ़्रीकी मूल के मज़दूर काम की तलाश में पूरा-पूरा दिन खड़े मिलते हैं उनमें से कुछ, सड़कों के किनारे छोटा-मोटा सामान भी बेच लेते हैं.
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त्रिपोली से 60 कि.मी. दूर 2-3 ईस्वी की रोमन बस्ती ‘सब्राता’ है. यह यूनेस्को की विश्व-संरक्षित घोषित धरोहर है. इसे जर्मन-इटली आदि ने संभाला है जबकि पहले, सरकार इसके रख-रखाब पर उदासीन थी पर अब सौभाग्य से ऐसा नहीं है. 6 दीनार प्रवेश-शुल्क है.
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सब्राता के पुन:संरक्षित अवशेष.
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सब्राता में इस युवक की इच्छा थी कि उसकी यूं हंसते हुए फोटो खींची जाए. (लेकिन ब्लाग पर, मैं अपनी मर्ज़ी से लगा रहा हूं )
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सब्राता शहर से समुद्र में जाने वाली अंडरग्राउंड सीवर-लाइन.
( ऐसी मति तू  मेरे इंजीनियर को भी देना दाता…)
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सब्राता का एक प्राचीन सार्वजनिक प्रेक्षाग्रह.
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सब्राता में ही नहीं लगभग हर जगह प्राचीन कलाकृतियों की मुखाकृतियां दुर्भाग्यवश धार्मिक कारणों से, ऐसे ही नष्ट कर दी गई हैं.
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नंबरप्लेट में 5 माने त्रिपोली-लीबियन. बाक़ी देशों की कंपनियों/ राजदूतावासों आदि को देश के आधार पर नंबर आवंटित हैं. भारत का नंबर 48 है.
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शासक कर्नल गद्दाफ़ी की फ़ोटो हर ओर मिलती हैं. इन्हें ‘लीडर’ के नाम से संबोधित किया जाता है. नाम कोई नहीं लेता. यहां का इकलौता अंग्रेज़ी दैनिक ‘जाना’ है जो साइक्लोस्टाइल तरीक़े से छपता है.  (हो सकता है कि कई युवा पाठकों को इस तकनीक की जानकारी न हो). भाषा के स्तर के बारे में कुछ न कहने से भी काम चल सकता है. दूसरा अंग्रेज़ी साप्ताहिक ‘दि त्रिपोली पोस्ट’ है, दोनों ही सरकार चलाती है.
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यहां का इकलौता पुराना बाज़ार ‘मदीना’.
त्रिपोली में अब एक मॉल भी खुल गया है.
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इकलौता 5-सितारा सरकारी होटल ‘अल-कबीर’ जिसमें सुविधाओं के सुधार की असीम संभावनाएं हैं, ग्रीन-स्क्वेयर, बंदरगाह व इस होटल के बीच स्थित है. इसके कमरों के रख-रखाव का काम महिलाएं भी करती हें. यहां सभी विदेशियों के पासपोर्ट जमा करवा लेने का रिवाज़ है. पास ही रेडीसन बन गया है व मैरियट लगभग पूरा हो चुका है. अब इसे प्रतिस्पर्धा शब्द की जानकारी पहली बार होगी.
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यहां पेट्रोल 200 भारतीय रूपये में 27 लीटर है. महिलाओं को पूर्ण आदर मिलता है. महिलाएं आमतौर पर गाड़ियां चलाती दिखती हैं. किन्तु व्यभिचार की सज़ा सार्वजनिक व भयावह होती है.
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खजूर का मौसम है. 5-7 दीनार में 1 किलो उम्दा खजूर है आजकल .
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त्रिपोली का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड़डा, जो भारत के किसी छोटे-मोटे रेलवे-स्टेशन सा लगता है. “धूम्रपान निषेध” बोर्डों के बावजूद स्थानीय लोग लॉबी में सिगरेट पी लेते हैं, और कुछ भी कहीं भी फेंक देते हैं, हमारे बस-अड्डों की तरह. हालांकि मद्यपान एकदम निषिद्ध है व इसका कड़ाई से पालन भी होता है. शायद ही, कोई बोर्ड अंग्रेज़ी में लिखा मिले.
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इस्तानबुल, तुर्की की राजधानी जहां से दिल्ली के लिए जहाज़ बदला. दूसरा रास्ता वाया-दुबई भी है. भारत-लीबिया के बीच सीधी उड़ान नहीं है, किन्तु निकट भविष्य में इसकी संभावना देखी जा रही है. दोनों सरकारें इस दिशा में काम कर रही हैं.
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इस्तानबुल हवाई अड्डे से समुद्र यूं दिखता है. त्रिपोली से जुड़ने के लिए तुर्किश एअरलाइन, अमीरात एअरलाइन से सस्ती व (अफ़वाहों के विपरीत) कहीं अधिक बढ़िया है. दुबई से त्रिपोली की उड़ान के दौरान, अमीरात एअरलाइन ने तो बुज्का बना के रख मारा था.
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एक जगह ‘मैय्या’ लेने को रूके हम. मैय्या माने पानी. मंजारिया माने खाना. सियासिया माने राजनयिक… मुश्किल, ख्लास जैसे बहुत से अरबी शब्द समझ आते थे. यहां अंग्रेज़ी समझने/बोलने वाले ढूंढना रेत में पानी की बूंद पकड़ने जैसा है. लेकिन हैरानी हुई कि दूर-दराज़ के इस इलाक़े में एक अधेड़  दुकानदार बढ़िया अंग्रेज़ी बोलते मिला. उससे भी ज़्यादा ख़ुशी मुझे इस बात की हुई जब उसने बताया कि वे इंडियन फ़िल्में देखना बहुत पसंद करते हैं. ये अरबी में सब-टाइटल्ड होती हें. पता नहीं कहां-कहां से जुगाड़ बैठाते हैं ये फ़िल्मों के लिए. यह बात अलग है कि वहां कोई हिन्दी चैनल प्रसारित नहीं होता है. 
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                                                                            -काजल कुमार
















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