बहुत सुन्दर प्रस्तुति...! -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (25-12-13) को "सेंटा क्लॉज है लगता प्यारा" (चर्चा मंच : अंक-1472) पर भी होगी! -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वैसे एक बार सत्ता की मलाई का स्वाद मिलना बहुत जरूरी है। याद कीजिये बसपा के शुरुआती दौर के जलसे जिनमें ’तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ जैसे नारे स्टेज से भी लगते थे, उसी बसपा ने सत्ता स्वाद चखने के बाद जातीय समरसता के कार्यक्रम करने शुरू कर दिये।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (25-12-13) को "सेंटा क्लॉज है लगता प्यारा" (चर्चा मंच : अंक-1472) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बिन्नी के भाग से छींका टूट जाए तो हमरा पेट भरे :)
जवाब देंहटाएंहा हा हा!!
जवाब देंहटाएंराजनीति हर राह चलेगी।
जवाब देंहटाएंये भी हो जायेगा ..
जवाब देंहटाएंवैसे एक बार सत्ता की मलाई का स्वाद मिलना बहुत जरूरी है। याद कीजिये बसपा के शुरुआती दौर के जलसे जिनमें ’तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ जैसे नारे स्टेज से भी लगते थे, उसी बसपा ने सत्ता स्वाद चखने के बाद जातीय समरसता के कार्यक्रम करने शुरू कर दिये।
जवाब देंहटाएंक्या बात वाह!
जवाब देंहटाएंअरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
अब तो तुझे आवाज़ लगाते भी जी डरे