मेरा दर्द ना जाने कोय | मै तो कहती हूँ की हम आम लोगों को भी इस अमेरिकी पट्टे को अपने सांसदों और विधायको के गले में बांध देना चाहिए ताकि वोट लेने के बाद वो गायब ना हो जाये |
एक 'सांकेतिक कहानी है "पट्टासिंह का पट्टा" उसका मुझे आपने चित्र मुहय्या करा दिया. आभार. लिंक है : http://raamkahaani.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
मैं तो उस कहानी को पूरा करना ही भूल गया था. आपके पट्टेदार कार्टून ने याद करा दिया. पुनः आभार.
हा हा हा हा हा अ हा हा ....
जवाब देंहटाएंमेरे गले में पट्टा नहीं देखते..!
बहुत खूब, काजल सर. बहुत खूब!
सटीक चित्रण.
nice...........................................................................................................................................nice.................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................nice
जवाब देंहटाएंमेरा दर्द ना जाने कोय |
जवाब देंहटाएंमै तो कहती हूँ की हम आम लोगों को भी इस अमेरिकी पट्टे को अपने सांसदों और विधायको के गले में बांध देना चाहिए ताकि वोट लेने के बाद वो गायब ना हो जाये |
बेचारा पट्टे वाला
जवाब देंहटाएंसच में .... :)
जवाब देंहटाएंहा...हा...हा...बहुत ही तीखा कटाक्ष
जवाब देंहटाएंपट्टे की जगह बदली के हिसाब से वो कैदी तो ये पालतू '...' हुए !
जवाब देंहटाएंकार्टून तो अदभुत है काजल भाई पर दो रिस्क भी हैं ...
एक तो ये कि इस बिना पर ब्लागर बंधु आपको खांटी कम्युनिस्ट ना मान लें :)
और दूसरा ये कि आपके ख्याल को खारिज करने के ख्याल से मन्नू भैय्या को जीवन दान ना मिल जाए :)
टिप्पणी डिस्क्लेमर : टिप्पणी में उद्धृत एक भी पट्टा देसी नहीं माना गया है !
:)
जवाब देंहटाएंलगता तो ऐसा ही है :)
जवाब देंहटाएंहा हा हा बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंNice :) :) :) :) :) :) :) :) :) :) :) !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंकाजल कुमार जी आपका जवाब नहीं...
जवाब देंहटाएंतुस्सी ग्रेट हो...
बेचारे :):)
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंएक 'सांकेतिक कहानी है "पट्टासिंह का पट्टा" उसका मुझे आपने चित्र मुहय्या करा दिया. आभार.
लिंक है : http://raamkahaani.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
मैं तो उस कहानी को पूरा करना ही भूल गया था. आपके पट्टेदार कार्टून ने याद करा दिया. पुनः आभार.
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तीखा कटाक्ष.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
क्या खूब कही...
जवाब देंहटाएंविडंबना है.
जवाब देंहटाएंहमारा एक छोटा सा प्रयास है इन्टरनेट पर उपलब्ध हास्य व्यंग लेखो को एक साथ एक जगह पर उपलब्ध करवाने का,
जवाब देंहटाएंसभी इच्छुक ब्लोगर्स आमंत्रित है
हास्य व्यंग ब्लॉगर्स असोसिएशन सदस्य बने
बहुत सटीक हुजूर तो गये काम से.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
बेहतरीन कटाक्ष !
जवाब देंहटाएंबेचारे मुन्ना की बेचारगी ....
जवाब देंहटाएंकाजल साहेब,
जवाब देंहटाएंएक और पत्ता पड़ा है "मन" मोहन के गले में...
उसकी डोर तो "मैडम" के हाथों में है..
बहुत सुन्दर कार्टून.
सिंहनाद से आर्तनाद तक - एक चुके हुए प्रधान की आत्मकथा
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