शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

यह है अंतरर्रष्ट्रीय ब्लागर संगठन की रूपरेखा.


आज कार्टून नहीं.

ब्लागिंग आज अपनी पहचान बना रही है जिसके चलते तमाम ब्लागों पर स्तरीय व कहीं अधिक मात्रा में सामग्री उपलब्ध हो रही है. जहां एक ओर इस समग्री को प्रकाशन संस्थान धड़ल्ले से किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर बेचारे ब्लागलेखक यही शिकायत करते घूम रहे हैं कि भई मेरा नाम तो साथ में दे देते, भई मुझे सूचना तो दे देते…. अकेले दुकेले ब्लागर की हिम्मत नहीं है कि वह अकेला इस डकैती के ख़िलाफ़ खड़ा हो सके. जबकि दूसरी ओर दुनिया भर का फ़िल्म व संगीत उद्योग सफलतापूर्वक इस दिशा में कार्य करते हुए अपने उत्पाद को बचाने में लगा हुआ है व इसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं.

मेरा एक सुझाव है, एक “अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर संगठन” होना ही चाहिये. इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन का स्वरूप एक सिंडीकेट का सा होना चाहिए अन्य लेख/चित्र सिंडीकेटों की ही तरह.

1. इसके सदस्यों के ब्लागों से यदि कोई प्रकाशन/प्रसारण के लिए सामग्री ले तो उसका पारिश्रमिक दिया जाना ज़रूरी हो. फ़िल्म आदि दूसरे कला क्षेत्रों में इसी प्रकार के संगठन भारत सहित दुनिया भर में कार्यरत हैं जो अपने सदस्यों को शोषण से तो बचाते ही हैं, उनकी आवाज़ बन कर भी उभरते हैं.
2. इस संगठन का एक लोगो (logo) हो. यह लोगो, सदस्यों के ब्लाग पर निश्चित स्थान पर लगा हो व साथ ही लिखा हो कि यह ब्लाग इस संगठन का सदस्य है व सामग्री कापीराइटेड है इस सूचना के साथ कि सामग्री पारिश्रमिक भुगतान की शर्त पर प्रकाशन/प्रसारण/अनुवाद/व्यवसायिक प्रयोग के लिए उपलब्ध है.
3. दुनिया भर में आज, लोग पैसा देकर संगीत/किताबें डाउनलोड कर रहे हैं. प्रकाशक भी लेखकों को रायल्टी देकर लिखवाते हैं. तो फिर ब्लाग सामग्री के लिए भुगतान क्यों नहीं ? क्योंकि ब्लागरों की आवाज़ एकजुट नहीं है, इनका कोई संगठन नहीं है.
4. सामग्री के प्रयोग के लिए भुगतान की दर बहुत अधिक न हो ताकि मामूली भुगतान  पर अधिक से अधिक लोग इस संगठन के ब्लाग मेंबरों की सामग्री का प्रयोग करने को उत्साहित हों.
5. इससे ब्लागरों को अच्छा लिखने का प्रोत्साहन तो मिलेगा ही, compulsive सतही लेखन से भी ब्लागरों का पीछा छूटेगा.
6. यह संगठन, एक संगठित विपणन नीति का पालन करते हुए अपने सदस्यों के ब्लागों से सामग्री प्रयोग करने को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से समय समय पर प्रकाशन/प्रसारण समूहों से बातचीत-मुलाकात/पत्र-व्यवहार इत्यादि करे.
7. इस पारिश्रमिक का एक निश्चित प्रतिशत संगठन को सीधे दिया जाए व यह राशि सदस्यों के कापीराइट अधिकारों की सुरक्षा में ख़र्च हो. रेडियो टी.वी. स्टेशन गाने प्रयोग करने के एवज में रिकार्ड निर्माताओं को इसी तरह डायरेक्ट पेमेंट करते हैं. संगठन के ब्लाग पर हर प्राप्त किए गए भुगतान व सदस्यों को किये गए भुगतान का चिट्ठा दैनिक आधार पर जारी करें. इससे पारदर्शिता बनी रहेगी. संगठन व इसके सदस्यों के बीच कोई भी मदभेद या विवाद होने पर सुलह सफाई के लिए बाक़यदा एक फ़ोरम हो व उसके निर्णयों की बाध्यता के बारे में नियम हों. पारिश्रमिक का बड़ा हिस्सा ब्लाग लेखक को ही जाना चाहिये.
8. जो संस्थान आदि इस संगठन के सदस्यों की सामग्री प्रयोग करें उनके नाम लगातार संगठन के ब्लाग पर जोड़े जाते रहने चाहिए ताकि दूसरों को भी पता चल सके कि कितनी उम्दा साम्रगी इस संगठन के सदस्य प्रस्तुत करते हैं.
9. इससे तथाकथित बड़े लेखकों की झंडाबरदारी अपने आप दूसरों के लिए जगह देने लगेगी.
                                                               000000000 
                                                                                                                           -काजल कुमार.
(इस लेख का श्रेय पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी को है जिनकी पोस्ट ब्लागर एकता जिन्दाबाद….."जिन्दाबाद-जिन्दाबाद”  पढ़कर टिप्पणी करने के बजाय मुझे लगा कि यह एक कहीं गंभीर पोस्ट है जिसके चलते मुझे यह लिखने की प्रेरणा मिली. इसमें ढेरों बातें और जोड़ी जा सकती हैं. मुझे आशा है कि कुछ जुझारू मित्र इस दिशा में ठोस क़दम उठा सकते हैं.)

35 टिप्‍पणियां:

  1. aapki baat ko poorna samarthan !

    bahut umda aur upyogi aalekh.......

    jai ho !

    जवाब देंहटाएं
  2. बिल्कुल ठीक लिख रहे हैं.... पत्र-पत्रिकाओं को अच्छा मैटेरियल मिल रहा है.... जिन लोगों के लेखों को संपादक वापस करना भी उचित नहीं समझते थे और कभी कभी उसी विचार पर लेख छप जाते थे, आज उन्हीं सामान्य लोगों के लिखे हुये को छापा जाता है और मजे की बात उस बेचारे को सूचना तक नहीं दी जाती.... आपकी बात का पूरा समर्थन....

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया ....बहुत ही अच्छा लेख है काजल कुमार जी, और आपके विचार भी नेक है , आप शुरू करे हम आपके साथ है .. ......

    इसे भी पढ़े :-
    (आप क्या चाहते है - गोल्ड मेडल या ज्ञान ? )
    http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_16.html

    जवाब देंहटाएं
  4. कम से कम उसे सूचना तो देनी चाहिए। एकदम सही बात।

    जवाब देंहटाएं
  5. .अभी बनवा लेते हैं ...हा हा हा

    आपसे सहमत हूँ भाई...

    जवाब देंहटाएं
  6. अभिलाषा तो महान है -मगर यह होगा कैसे ?
    किस भाषा में ?बात अंतर्र्रास्त्रीय है .
    बड़ा काम है .....चलिए सोच तो आयी !

    जवाब देंहटाएं
  7. विचारणीय विषय है । फिर भी इतना ज़रूर कहना चाहूँगा कि ब्लोगिंग में कोई बंधन नहीं होना चाहिए । जैसे गूगल ने फ्री दिया है , इसी तरह सभी बंधनमुक्त लेकिन संगठित होना चाहिए । ताकि सभी को कुछ फायदा हो सके , आर्थिक लाभ भी ।

    जवाब देंहटाएं
  8. होंना तो चाहिए ....

    ___________
    new post -मजदुर

    जवाब देंहटाएं
  9. कृपया भविष्य में लेख भी लिखते रहें आपको पढ़ कर अच्छा लगा !
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. @ काजल भाई,
    सबसे पहले पंडित डी.के.शर्मा वत्स ...ज़िन्दाबाद ...ज़िन्दाबाद...ज़िन्दाबाद ! फिर काजल भाई :)

    सच तो ये है कि हमारी अपनी सतही आलेख सामग्री कोई बन्दा छापता ही नहीं :) इसीलिये अपने को अब तक ऐसी कोई शिकायत भी नही हुई पर सम्भावनाओं का क्या ?

    आपके विचारों से पूर्ण सहमति है संगठन की रूपरेखा जम रही है इसे हमारी सदस्यता का आवेदनपत्र मानियेगा ! मतलब ये कि काजल कुमार और पंडित डी.के.शर्मा वत्स् जी की अगुवाई हमें मंज़ूर है !


    @ अरविन्द मिश्र जी ,
    भाई , हिन्दी भाषी पूरी दुनिया में बिखरे पडे हैं इसे अंतर्राष्ट्रीय मान कर शुरु कीजिये बाद में अन्य भाषाओं के लिये भी द्वार खोलिये मतलब ये कि संगठन ब्लाग लेखकों का होगा !

    जवाब देंहटाएं
  11. पोस्‍ट खोलते समय दिमाग में कई चित्र आ रहे थे कि कार्टून कैसा होगा? लेकिन आप भी बात को विस्‍तार से कहने लगे? कभी-कभी विस्‍तार से ही कहना चाहिए। आपकी बात का समर्थन।

    जवाब देंहटाएं
  12. पूरी तरह सहमत…
    इस चोरी-चकारी के मारे परेशान हैं हम तो…
    टाइम्स जैसे बड़े समूह भी अपना लेख धड़ल्ले से चुरा लेते हैं, पैसा भेजना तो दूर, पूछताछ करो तो जवाब भी नहीं देते…।

    बड़े ही प्रोफ़ेशनल, स्टाइलिश और मॉडर्न टाइप के चोर होते हैं ये बड़े प्रकाशन समूह…। आपने और शर्मा जी ने बहुत सही मुद्दा उठाया है… पहले एक दो बार इस मुद्दे पर एक-दो पोस्ट डाली थीं, लेकिन बात सिरे चढ़ी नहीं, क्योंकि एकता का अभाव है हममें…

    जवाब देंहटाएं
  13. @काजल कुमारजी
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद और हमने आपकी बात मान ली है ...!

    जवाब देंहटाएं
  14. काजल भाई...ये हमारी क्षुद्र सी पोस्ट का सौभाग्य ही कहा जाएगा कि जिससे प्रेरित हो आप के माध्यम से इस नेक विचार नें जन्म लिया....इस विषय में आपके विचार बहुत सही एवं स्पष्ट लगे....यदि इस सोच को उसके सही रूप में अंजाम दिया जा सके तो हिन्दी और हिन्दी ब्लागर्स दोनों का हित सध सकता है.....

    आप शुरूवात कीजिए, हम आपके साथ हैं....काजल भाई जिन्दाबाद!! :)
    अली भाई के नाम को हम संगठन के महामन्त्री पद के लिए प्रस्तावित करते हैं.....:)

    जवाब देंहटाएं
  15. काजल जी, आपके सुझाव में दम है। इस दिशा में पहल किये जाने की आवश्यकता है।

    जवाब देंहटाएं
  16. ब्लॉग लेख और टिप्पणियों से बहुत कुछ सकारात्मक संदेश मिल रहे

    फिर भी सुरेश चिपलूनकर जी के वाक्यांश को रेखांकित करना चाहूँगा कि एकता का अभाव है हममें…
    समाज के अन्य दोषों के समान

    जवाब देंहटाएं
  17. सम्भावनाएं असीम है।
    और भविष्य उज्जवल।
    राहें थोडी कठीन है।
    पर आवश्यक्ता अटल।

    जवाब देंहटाएं
  18. नेक सुझाव है ... अगर ब्लोगिंग को प्रिंट मीडिया के समकक्ष खड़ा होना है तो इस तरह की अवधारणा पर विचार किया जाना आवश्यक है ... इस विषय पर और विचार अपेक्षित है ... मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए

    जवाब देंहटाएं
  19. शत प्रतिशत सहमत। शुरुआत धीमे हो पर दुरुस्त हो।

    जवाब देंहटाएं
  20. आपकी सोच ने एक सोच का मुद्दा तो दे ही दिया है. आज यह बात बडी दुरूह लगती है पर जेहन में बात आगई है तो दूर तक तो जायेगी ही. आपने जो इस योजना का जो खाका प्रस्तुत किया है उसके लिये आप बधाई के पात्र हैं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  21. सीरियस बात सोची है आपने और वत्स साहब ने।
    जिनके लेख प्रिंट मीडिया में छपते हैं या ऐसी संभावना है, उन्हें जरूर कुछ करना चाहिये।
    जरूर करें आप लोग, हमारी शुभकामनायें आप सबके साथ हैं।

    जवाब देंहटाएं
  22. काजल भाई, पंडित डी.के.शर्मा जी और आपकी बात से मैं पूर्णत: सहमत हूँ. हद तो यह है कि रचना छाप भी जाती है, ऊपर से पैसे देना तो दूर की बात सुचना तक नहीं दी जाती.
    ब्लोगर एकता ज़िन्दाबाद!
    ब्लोगर एकता ज़िन्दाबाद!



    व्यंग्य: युवराज और विपक्ष का नाटक

    जवाब देंहटाएं
  23. आपसे सहमत हूँ। हम तो पहले से ही साथ साथ हैं. हैं न !!!!!काजल जी ????

    जवाब देंहटाएं
  24. काजल भाई, पंडित डी.के.शर्मा जी और आपकी बात से पूर्णत: सहमत...

    जवाब देंहटाएं

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin