बहुत सुन्दर प्रस्तुति...! -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (19-01-2014) को तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497 में "मयंक का कोना" पर भी है! -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपने अपने कार्टूनों में अपना नाम इम्बोज़ करना प्रारंभ कर दिया है, जो इम्पैक्ट को थोड़ा कम करता है. शायद आपने इंटरनेटी चोरों के कारण किया है, परंतु यह भी मानें कि आपके स्टाइल को देख कर ही सही पाठक यह समझ लेगा कि ये तो काजल जी के कार्टून हैं. दूसरा, आपकी साइट खोलने पर एकाध पेज अपने आप खुल जाता है - विज्ञापनों वाला. हालांकि व्यवसायिक होना आवश्यक भी है और मैं स्वयं भी इस मामले में घोर व्यवसायिक हूँ, फिर भी, यह पाठकों के लिए असुविधा जनक होता है.
रविशंकर जी, कुछ पत्र-पत्रिकाओं, चैनलों द्वारा कार्टून चुराने के साथ साथ, मेरा नाम मिटा कर कार्टून प्रयोग करने के बारे में मुझे पता चला तो मजबूरी में मुझे यह वाटरमार्क प्रयोग करना पड़ रहा है. मैं सहमत हूं कि इससे कार्टून की गुणवत्ता में अंतर आता है. विज्ञापन वाले पृष्ठ के बारे में पता करता हूं, मुझे लगता है किसी विज्ञापक ने डिफ़ाल्ट में यह काम किया हुआ है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (19-01-2014) को तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सच है..
जवाब देंहटाएंजल्दी करो .....
जवाब देंहटाएंआपने अपने कार्टूनों में अपना नाम इम्बोज़ करना प्रारंभ कर दिया है, जो इम्पैक्ट को थोड़ा कम करता है. शायद आपने इंटरनेटी चोरों के कारण किया है, परंतु यह भी मानें कि आपके स्टाइल को देख कर ही सही पाठक यह समझ लेगा कि ये तो काजल जी के कार्टून हैं.
जवाब देंहटाएंदूसरा, आपकी साइट खोलने पर एकाध पेज अपने आप खुल जाता है - विज्ञापनों वाला. हालांकि व्यवसायिक होना आवश्यक भी है और मैं स्वयं भी इस मामले में घोर व्यवसायिक हूँ, फिर भी, यह पाठकों के लिए असुविधा जनक होता है.
रविशंकर जी, कुछ पत्र-पत्रिकाओं, चैनलों द्वारा कार्टून चुराने के साथ साथ, मेरा नाम मिटा कर कार्टून प्रयोग करने के बारे में मुझे पता चला तो मजबूरी में मुझे यह वाटरमार्क प्रयोग करना पड़ रहा है. मैं सहमत हूं कि इससे कार्टून की गुणवत्ता में अंतर आता है. विज्ञापन वाले पृष्ठ के बारे में पता करता हूं, मुझे लगता है किसी विज्ञापक ने डिफ़ाल्ट में यह काम किया हुआ है.
हटाएंअखिलेश की तरह विज्ञापन दे कर भी काम चल सकता है :)
जवाब देंहटाएं:) :) :)
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