बढि़या व्यंग्य किया है आपने। अरविन्द जी की टिप्पणी से सहमत हूँ कि आजकल के बच्चे घर घुसवा हो गये हैं। मैनें भी अपना फेसबुक एकाउन्ट लोगों के कहने पर बनाया, पर ज्यादा वक्त ब्लॉग पर ही रहता हूँ। एक दिन यह देखकर हैरान रह गया कि मेरे साले ने, जो कि कक्षा 8 का छात्र है, मुझे फेसबुक पर फ्रेण्ड रिक्वेस्ट भेजी। जो उम्र बच्चों को अपने कैरियर की नींव रखने की होती है, उसमें वे फेसबुक पढ़ रहे हैं। वैसे फेसबुक के बढ़ते दबदबे पर मैनें एक कविता भी लिखी है। मेरे ब्लॉग पर 'कविता' वाले टैब पर जाकर पढ़ सकते हैं।
अम्मा पुराने जमाने की है...कुछ समझती ही नहीं....
जवाब देंहटाएंघर घुसवा बच्चों का युग! :)
जवाब देंहटाएंसही है,
जवाब देंहटाएंकल मैं एक बच्चे से पूछ रहा था कि उस की पेशियाँ कमजोर क्यों हैं?
सच है ... :) सारे दोस्त अब यहीं मिलते हैं ....
जवाब देंहटाएंससुरे ने बच्चों का बचपन छीन लिया. प्रतिकूल असर तो उनके शारीरिक विकास पर पड़ेगा ही.
जवाब देंहटाएंहाँ कुछ जाने कुछ अनजाने ! जो लड़का है वो लड़का है या नहीं और जो लड़की है वो लड़की है या नहीं पता नहीं पर हम सब फेशबुक फेशबुक खेलते हैं!!!
जवाब देंहटाएंअब बताईये कोई क्या करे।
जवाब देंहटाएं:))))
जवाब देंहटाएं:) लगता है अम्मा का अकाउंट नहीं है.
जवाब देंहटाएं:):) अब तो अम्मा भी फेस बुक पर होनी चाहिए ..
जवाब देंहटाएंNice post .
जवाब देंहटाएंनफ़रतें राजनीति की देन हैं। सही जानकारी के लिए देखिए
यह वेबसाइट
‘इस्लामिक पीस मिशन‘ Islamic Peace Mission
शांति के लिए समर्पित एक वेबसाइट
isiliye lagta hai ki AMMA ko bhi facebook join karwa de...
जवाब देंहटाएंNice cartoon.... Very true...
जवाब देंहटाएंबेटे के साथ साथ पिता को भी डांट पड़नी चाहिए .
जवाब देंहटाएंअम्मा को भी वहीँ होना चाहिए :)
जवाब देंहटाएंयह कड़वा सच है.चिंताजनक स्थिति.
जवाब देंहटाएंअब तो मोबाइल पर भी फेसबुक फ्री मिल जाता है तो कंप्यूटर/नेट पर पाबंदी भी क्या कर लेगी?
)))
जवाब देंहटाएंकर लो सारी दुनिया को मुट्ठी में.... घर बैठे बैठे:)
जवाब देंहटाएंAmma becharee ye bhed kya jane?
जवाब देंहटाएंआदमी बन गया 'किताब' है अब,
जवाब देंहटाएं'चेहरा' उसका तो 'लेपटॉप' है अब,
खेल अब 'उंगलियाँ' ही करती है,
आलसी 'जिस्म' तो 'नवाब' है अब.
http://aatm-manthan.com
सही बात कही बच्चे ने। एक ही इलाज है अम्मा को भी फेसबुक पर लाया जाय।
जवाब देंहटाएंसर्फ़िंग की आदत के चलते जैसे ये बच्चे हैं हम भी वैसे ही बुढ्ढे नही हो गये हैं क्या?:)
जवाब देंहटाएंरामराम
naye jamane ke ye bachche hai.....
जवाब देंहटाएंलगता है अम्मा का अकाउंट भी है :))
जवाब देंहटाएंबढि़या व्यंग्य किया है आपने। अरविन्द जी की टिप्पणी से सहमत हूँ कि आजकल के बच्चे घर घुसवा हो गये हैं। मैनें भी अपना फेसबुक एकाउन्ट लोगों के कहने पर बनाया, पर ज्यादा वक्त ब्लॉग पर ही रहता हूँ। एक दिन यह देखकर हैरान रह गया कि मेरे साले ने, जो कि कक्षा 8 का छात्र है, मुझे फेसबुक पर फ्रेण्ड रिक्वेस्ट भेजी। जो उम्र बच्चों को अपने कैरियर की नींव रखने की होती है, उसमें वे फेसबुक पढ़ रहे हैं। वैसे फेसबुक के बढ़ते दबदबे पर मैनें एक कविता भी लिखी है। मेरे ब्लॉग पर 'कविता' वाले टैब पर जाकर पढ़ सकते हैं।
जवाब देंहटाएंHey mom ! join me in my world.....
जवाब देंहटाएंयह तो बढ़िया है, अब बाहर जायें भी कहां, न पार्क बचे, न खुले मैदान.
जवाब देंहटाएंsahi hai
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