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मंगलवार, 6 सितंबर 2011

कार्टून:- केवल फ़ेसबुक वालों के लिए...


28 टिप्‍पणियां:

  1. अम्मा पुराने जमाने की है...कुछ समझती ही नहीं....

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  2. सही है,
    कल मैं एक बच्चे से पूछ रहा था कि उस की पेशियाँ कमजोर क्यों हैं?

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  3. सच है ... :) सारे दोस्त अब यहीं मिलते हैं ....

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  4. ससुरे ने बच्चों का बचपन छीन लिया. प्रतिकूल असर तो उनके शारीरिक विकास पर पड़ेगा ही.

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  5. हाँ कुछ जाने कुछ अनजाने ! जो लड़का है वो लड़का है या नहीं और जो लड़की है वो लड़की है या नहीं पता नहीं पर हम सब फेशबुक फेशबुक खेलते हैं!!!

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  6. :) लगता है अम्मा का अकाउंट नहीं है.

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  7. :):) अब तो अम्मा भी फेस बुक पर होनी चाहिए ..

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  8. बेटे के साथ साथ पिता को भी डांट पड़नी चाहिए .

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  9. अम्मा को भी वहीँ होना चाहिए :)

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  10. यह कड़वा सच है.चिंताजनक स्थिति.
    अब तो मोबाइल पर भी फेसबुक फ्री मिल जाता है तो कंप्यूटर/नेट पर पाबंदी भी क्या कर लेगी?

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  11. कर लो सारी दुनिया को मुट्ठी में.... घर बैठे बैठे:)

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  12. आदमी बन गया 'किताब' है अब,
    'चेहरा' उसका तो 'लेपटॉप' है अब,
    खेल अब 'उंगलियाँ' ही करती है,
    आलसी 'जिस्म' तो 'नवाब' है अब.

    http://aatm-manthan.com

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  13. सही बात कही बच्चे ने। एक ही इलाज है अम्मा को भी फेसबुक पर लाया जाय।

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  14. सर्फ़िंग की आदत के चलते जैसे ये बच्चे हैं हम भी वैसे ही बुढ्ढे नही हो गये हैं क्या?:)

    रामराम

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  15. बढि़या व्‍यंग्‍य किया है आपने। अरविन्‍द जी की टिप्‍पणी से सहमत हूँ कि आजकल के बच्‍चे घर घुसवा हो गये हैं। मैनें भी अपना फेसबुक एकाउन्‍ट लोगों के कहने पर बनाया, पर ज्‍यादा वक्‍त ब्‍लॉग पर ही रहता हूँ। एक दिन यह देखकर हैरान रह गया कि मेरे साले ने, जो कि कक्षा 8 का छात्र है, मुझे फेसबुक पर फ्रेण्‍ड रिक्‍वेस्‍ट भेजी। जो उम्र बच्‍चों को अपने कैरियर की नींव रखने की होती है, उसमें वे फेसबुक पढ़ रहे हैं। वैसे फेसबुक के बढ़ते दबदबे पर मैनें एक कविता भी लिखी है। मेरे ब्‍लॉग पर 'कविता' वाले टैब पर जाकर पढ़ सकते हैं।

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  16. यह तो बढ़िया है, अब बाहर जायें भी कहां, न पार्क बचे, न खुले मैदान.

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