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बुधवार, 22 सितंबर 2010

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

यह है अंतरर्रष्ट्रीय ब्लागर संगठन की रूपरेखा.


आज कार्टून नहीं.

ब्लागिंग आज अपनी पहचान बना रही है जिसके चलते तमाम ब्लागों पर स्तरीय व कहीं अधिक मात्रा में सामग्री उपलब्ध हो रही है. जहां एक ओर इस समग्री को प्रकाशन संस्थान धड़ल्ले से किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर बेचारे ब्लागलेखक यही शिकायत करते घूम रहे हैं कि भई मेरा नाम तो साथ में दे देते, भई मुझे सूचना तो दे देते…. अकेले दुकेले ब्लागर की हिम्मत नहीं है कि वह अकेला इस डकैती के ख़िलाफ़ खड़ा हो सके. जबकि दूसरी ओर दुनिया भर का फ़िल्म व संगीत उद्योग सफलतापूर्वक इस दिशा में कार्य करते हुए अपने उत्पाद को बचाने में लगा हुआ है व इसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं.

मेरा एक सुझाव है, एक “अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर संगठन” होना ही चाहिये. इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन का स्वरूप एक सिंडीकेट का सा होना चाहिए अन्य लेख/चित्र सिंडीकेटों की ही तरह.

1. इसके सदस्यों के ब्लागों से यदि कोई प्रकाशन/प्रसारण के लिए सामग्री ले तो उसका पारिश्रमिक दिया जाना ज़रूरी हो. फ़िल्म आदि दूसरे कला क्षेत्रों में इसी प्रकार के संगठन भारत सहित दुनिया भर में कार्यरत हैं जो अपने सदस्यों को शोषण से तो बचाते ही हैं, उनकी आवाज़ बन कर भी उभरते हैं.
2. इस संगठन का एक लोगो (logo) हो. यह लोगो, सदस्यों के ब्लाग पर निश्चित स्थान पर लगा हो व साथ ही लिखा हो कि यह ब्लाग इस संगठन का सदस्य है व सामग्री कापीराइटेड है इस सूचना के साथ कि सामग्री पारिश्रमिक भुगतान की शर्त पर प्रकाशन/प्रसारण/अनुवाद/व्यवसायिक प्रयोग के लिए उपलब्ध है.
3. दुनिया भर में आज, लोग पैसा देकर संगीत/किताबें डाउनलोड कर रहे हैं. प्रकाशक भी लेखकों को रायल्टी देकर लिखवाते हैं. तो फिर ब्लाग सामग्री के लिए भुगतान क्यों नहीं ? क्योंकि ब्लागरों की आवाज़ एकजुट नहीं है, इनका कोई संगठन नहीं है.
4. सामग्री के प्रयोग के लिए भुगतान की दर बहुत अधिक न हो ताकि मामूली भुगतान  पर अधिक से अधिक लोग इस संगठन के ब्लाग मेंबरों की सामग्री का प्रयोग करने को उत्साहित हों.
5. इससे ब्लागरों को अच्छा लिखने का प्रोत्साहन तो मिलेगा ही, compulsive सतही लेखन से भी ब्लागरों का पीछा छूटेगा.
6. यह संगठन, एक संगठित विपणन नीति का पालन करते हुए अपने सदस्यों के ब्लागों से सामग्री प्रयोग करने को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से समय समय पर प्रकाशन/प्रसारण समूहों से बातचीत-मुलाकात/पत्र-व्यवहार इत्यादि करे.
7. इस पारिश्रमिक का एक निश्चित प्रतिशत संगठन को सीधे दिया जाए व यह राशि सदस्यों के कापीराइट अधिकारों की सुरक्षा में ख़र्च हो. रेडियो टी.वी. स्टेशन गाने प्रयोग करने के एवज में रिकार्ड निर्माताओं को इसी तरह डायरेक्ट पेमेंट करते हैं. संगठन के ब्लाग पर हर प्राप्त किए गए भुगतान व सदस्यों को किये गए भुगतान का चिट्ठा दैनिक आधार पर जारी करें. इससे पारदर्शिता बनी रहेगी. संगठन व इसके सदस्यों के बीच कोई भी मदभेद या विवाद होने पर सुलह सफाई के लिए बाक़यदा एक फ़ोरम हो व उसके निर्णयों की बाध्यता के बारे में नियम हों. पारिश्रमिक का बड़ा हिस्सा ब्लाग लेखक को ही जाना चाहिये.
8. जो संस्थान आदि इस संगठन के सदस्यों की सामग्री प्रयोग करें उनके नाम लगातार संगठन के ब्लाग पर जोड़े जाते रहने चाहिए ताकि दूसरों को भी पता चल सके कि कितनी उम्दा साम्रगी इस संगठन के सदस्य प्रस्तुत करते हैं.
9. इससे तथाकथित बड़े लेखकों की झंडाबरदारी अपने आप दूसरों के लिए जगह देने लगेगी.
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                                                                                                                           -काजल कुमार.
(इस लेख का श्रेय पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी को है जिनकी पोस्ट ब्लागर एकता जिन्दाबाद….."जिन्दाबाद-जिन्दाबाद”  पढ़कर टिप्पणी करने के बजाय मुझे लगा कि यह एक कहीं गंभीर पोस्ट है जिसके चलते मुझे यह लिखने की प्रेरणा मिली. इसमें ढेरों बातें और जोड़ी जा सकती हैं. मुझे आशा है कि कुछ जुझारू मित्र इस दिशा में ठोस क़दम उठा सकते हैं.)

बुधवार, 1 सितंबर 2010

कार्टून:- उफ़्फ़, इस पट्ठे ने तो तेल कर दिया...

इस कार्टून का आइडिया सतीश पंचम
जी का है मैंने तो बस चित्रांकन किया